क्या ओबरा विधानसभा सीट पर चुनावी समीकरण बदल रहे हैं?

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क्या ओबरा विधानसभा सीट पर चुनावी समीकरण बदल रहे हैं?

सारांश

बिहार के ओबरा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी इतिहास ने कई मोड़ लिए हैं। यहां की चुनावी राजनीति ने हमेशा कई दलों को एक-दूसरे से टकराने का मौका दिया है। जानें ओबरा में पिछले चुनावों के बाद क्या बदल गया है।

Key Takeaways

  • ओबरा की राजनीतिक पहचान कई दलों के बीच प्रतिस्पर्धा से बनी है।
  • यहां की कृषि और दस्तकारी क्षेत्र की समृद्धि इसे विशेष बनाते हैं।
  • राजद ने 2020 के चुनाव में महत्वपूर्ण जीत हासिल की।
  • ओबरा का चुनावी इतिहास किसी इंद्रधनुष की तरह विविध है।
  • मतदाता की सक्रियता यहां की राजनीति का दिशा निर्धारित करती है।

पटना, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मगध क्षेत्र में ओबरा एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जो अपनी कृषि समृद्धि, सदियों पुरानी दस्तकारी की कला और सबसे बढ़कर, अपने अप्रत्याशित चुनावी मिजाज के लिए जाना जाता है। 2020 का विधानसभा चुनाव यहां बहुकोणीय मुकाबले के लिए याद किया जाता है। वोटों का बिखराव इतना जबरदस्त था कि इसका सीधा फायदा राजद को मिला।

ओबरा, जिला मुख्यालय औरंगाबाद से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह छोटा मगर महत्वपूर्ण कस्बा, राजनीतिक विश्लेषकों के लिए किसी पहेली से कम नहीं रहा है।

आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में कांग्रेस ने 3 बार यहां जीत दर्ज की, लेकिन फिर सीट ने करवट ली। सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भी एक-एक बार यहां जीत का स्वाद चखने को मिला। सबसे बड़ा बदलाव 1995 में आया, जब राजाराम सिंह कुशवाहा ने पहली बार सीपीआई-माले के टिकट पर वाम दल का परचम लहराया और दो बार विधायक बने।

राजद ने 2005 से 2020 के बीच यहां चार बार जीत दर्ज करके अपनी पकड़ मजबूत की है। जदयू के लिए यह सीट हमेशा से चुनौती भरी रही है। पार्टी यहां अब तक कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है।

2020 में राजद के युवा उम्मीदवार ऋषि सिंह ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की। उन्होंने लोक जन शक्ति पार्टी (लोजपा) के डा. प्रकाश चंद्र को हराया। यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि एनडीए गठबंधन के घटक दलों (लोजपा और जेडीयू) के बीच वोट बंट गए थे।

मुकाबला इतना कड़ा था कि जदयू के सुनील कुमार 25 हजार से अधिक वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे, जबकि रालोसपा के अजय कुमार भी 19 हजार से ज्यादा वोट लाकर चौथे नंबर पर थे।

यह इलाका तीन महत्वपूर्ण नदियों (पश्चिम और उत्तर में पुनपुन, पूर्व में अदरी और फिर पश्चिम में जीवनदायिनी सोन नदी) से घिरा हुआ है। सोन के उपजाऊ मैदान इस क्षेत्र की रीढ़ हैं, जो धान और तिल जैसी प्रमुख फसलों की खेती को समृद्ध बनाते हैं।

कृषि के साथ-साथ, ओबरा की पहचान यहां के कारीगरों की उंगलियों में बसती है। यह कस्बा अपने कालीन (कारपेट) और कंबल उद्योग के लिए विश्वविख्यात है। यहां कालीन बुनाई की शानदार परंपरा 15वीं शताब्दी से चली आ रही है और कंबल निर्माण का हुनर भी सौ वर्षों से अधिक पुराना है।

2011 की जनगणना के अनुसार, ओबरा ब्लॉक की कुल जनसंख्या 2,26,007 थी। दिलचस्प बात यह है कि ओबरा के मतदाता ग्रामीण प्रभाव में हैं, जिनकी हिस्सेदारी 84.49 प्रतिशत है, यानी गांव की चौपाल और खेत की मेड़ पर होने वाली चर्चाएं ही यहां की राजनीति की दिशा तय करती हैं।

यहां के लोग मुख्य रूप से मगही, हिंदी और उर्दू बोलते हैं। ओबरा विधानसभा क्षेत्र काराकाट लोकसभा क्षेत्र का एक हिस्सा है और इसमें ओबरा और दाउदनगर प्रखंड शामिल हैं। इसका चुनावी इतिहास किसी इंद्रधनुष से कम नहीं रहा है। यहां किसी एक पार्टी का वर्चस्व कभी नहीं रहा।

ओबरा के चुनावी अखाड़े में हमेशा उथल-पुथल बनी रहती है।

Point of View

और यही विशेषता इसे अन्य क्षेत्रों से अलग बनाती है। विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच टकराव और मतदाता की सक्रियता इसे एक रोचक चुनावी स्थल बनाती है।
NationPress
30/10/2025

Frequently Asked Questions

ओबरा विधानसभा क्षेत्र की विशेषताएं क्या हैं?
ओबरा विधानसभा क्षेत्र अपनी कृषि समृद्धि, दस्तकारी की कला और बहु-राजनीतिक स्थिति के लिए जाना जाता है।
ओबरा में किस पार्टी ने सबसे ज्यादा चुनाव जीते हैं?
राजद ने ओबरा में 2005 से 2020 तक चार बार जीत दर्ज की है।
ओबरा का ऐतिहासिक चुनावी समीकरण क्या है?
ओबरा में चुनावी समीकरण हमेशा बहु-राजनीतिक रहा है, जिसमें कांग्रेस, राजद और वाम दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।