क्या ओडिशा में माओवादी नेता के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन किया गया है?
सारांश
Key Takeaways
- ओडिशा सरकार ने विशेष अदालत का गठन किया है।
- आजाद के खिलाफ 35 से अधिक मामले लंबित हैं।
- विशेष अदालत ओडिशा में सभी लंबित मामलों की सुनवाई करेगी।
- इस कदम से न्याय प्रणाली में तेजी आने की उम्मीद है।
- आजाद पर गंभीर आरोप हैं, जिनमें हत्या का मामला भी शामिल है।
भुवनेश्वर, 11 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा सरकार ने जेल में बंद माओवादी नेता दुन्ना केशव राव उर्फ आजाद के खिलाफ लंबित मामलों की जल्द सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष अदालत का गठन किया है। गृह विभाग ने आदेश जारी कर बताया कि आजाद के खिलाफ 35 से अधिक मुकदमे वर्षों से लंबित हैं, जिनकी सुनवाई तेजी से आगे बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया है।
आजाद ने 18 मई 2011 को आंध्र प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था। इसके बाद 1 जून 2011 को उसे ओडिशा पुलिस को सौंप दिया गया था, और तब से वह ओडिशा की जेल में बंद है।
गृह विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट और ओडिशा हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए राज्य सरकार ने ओडिशा हाईकोर्ट से परामर्श कर गजपति जिले में एक अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की नई अदालत की स्थापना की है। यह अदालत परलाखेमुंडी में बैठेगी और पूरे ओडिशा राज्य के भीतर आजाद से जुड़े सभी लंबित मामलों की सुनवाई करेगी।
हालांकि, विशेष अदालत रायगड़ा में दर्ज पॉक्सो एक्ट, 2012 के तहत दर्ज आजाद के मामले की सुनवाई नहीं करेगी।
बता दें कि आजाद के खिलाफ ओडिशा और आंध्र प्रदेश में कुल मिलाकर 37 आपराधिक मामले लंबित हैं। वह 2008 में वीएचपी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या का मुख्य आरोपी है। इस घटना के बाद कंधमाल में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा भड़की थी, जिसमें 39 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों घर जलकर खाक हो गए थे।
इसके अलावा, आजाद पर 2008 में नयागढ़ पुलिस आयुधागार पर हमले का भी आरोप है, जिसमें 14 लोग मारे गए थे, जिनमें 13 पुलिसकर्मी शामिल थे। वह 2006 के आर. उदयगिरी जेल ब्रेक मामले में भी आरोपी है। कंधमाल के तुमुडिबंध पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ एक हत्या का मामला भी दर्ज है।
आजाद अब तक कम से कम दस मामलों में बरी हो चुका है। कई बार उसने जल्द सुनवाई की मांग करते हुए जेल में भूख हड़ताल भी की। मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा और आंध्र प्रदेश सरकारों को ऐसे मामलों की सुनवाई तेज करने के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने पर विचार करने का निर्देश दिया था।