क्या बाबा महाकाल ने पालकी में सवार होकर भगवान विष्णु को सृष्टि का पदभार सौंपा?
                                सारांश
Key Takeaways
- बैकुंठ चतुर्दशी का उत्सव हर साल मनाया जाता है।
 - भगवान शिव और भगवान विष्णु का हरि-हर मिलन महत्वपूर्ण है।
 - इस दिन भक्त उपवास रखते हैं।
 
उज्जैन, 4 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। देशभर में मंगलवार को बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व 4 नवंबर को मनाया जा रहा है, क्योंकि मध्यरात्रि में भगवान शिव और भगवान विष्णु का हरि हर मिलन उत्सव आयोजित किया गया।
महाकालेश्वर मंदिर से बाबा की भव्य पालकी गोपाल मंदिर तक पहुंची, जिससे बैकुंठ चतुर्दशी की शुरुआत हुई। इस पावन अवसर पर द्वारकाधीश गोपाल मंदिर के पुजारी पवन शर्मा ने कहा, "पिछली रात, प्राचीन हरि-हर मिलन परंपरा का आयोजन हुआ, जब भगवान महाकाल की पालकी भगवान द्वारकाधीश के आंगन में पहुंची।"
उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु ने बाबा महाकाल को तुलसी की माला भेंट की, जबकि बाबा महाकाल ने भगवान विष्णु को बेलपत्र की माला अर्पित की। इसके बाद हरि-हर मिलन की विशेष आरती हुई, जो साल में केवल एक बार होती है, और इस पवित्र उत्सव को सफलता पूर्वक मनाया गया।
हरि हर मिलन उत्सव का महत्व बताते हुए पुजारी पवन शर्मा ने कहा कि ऐसा मान्यता है कि आषाढ़ की एकादशी के बाद भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा में पाताल लोक चले जाते हैं और पूरी पृथ्वी का भार भोलेनाथ संभालते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं और बैकुंठ में लौट आते हैं। बाबा महाकाल हरि-हर मिलन कर भगवान विष्णु को पृथ्वी का पदभार सौंपते हैं।
यहां हरि का अर्थ भगवान विष्णु और हर का अर्थ भगवान शिव है। इस उत्सव के दौरान शिव जी को पालकी में बैठाकर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है और भक्त दूर-दूर से इस हरि-हर मिलन का साक्षी बनने के लिए आते हैं।
इस भव्य मिलन के बाद से मध्यरात्रि से बैकुंठ चतुर्दशी का आरंभ हो चुका है। बैकुंठ चतुर्दशी का मुहूर्त रात 2 बजकर 6 मिनट से शुरू हुआ, जो 4 नवंबर की रात 11 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इस दिन सभी मंदिरों में भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भक्त उपवास रखकर भगवान शिव और भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं।