क्या राजस्थान में माता के ऐसे मंदिर हैं, जहां मां की कृपा से लकवे के मरीज स्वस्थ होते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- बिजासन माता का मंदिर - लकवे के मरीजों के लिए प्रसिद्ध।
- आवरी माता का मंदिर - 750 साल पुराना, लकवे से मुक्ति का अद्भुत स्थल।
- ईडाणा माता मंदिर - अग्निस्नान के लिए मशहूर।
- माता की कृपा से लोग अपने कष्टों से मुक्त होते हैं।
- श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या इन मंदिरों की लोकप्रियता को दर्शाती है।
ई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में अनेक चमत्कारी सिद्धपीठ हैं, जो अपनी अद्भुत कथाओं के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। राजस्थान में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं, जहां लोग दूर-दूर से लकवे की बीमारी का उपचार कराने के लिए आते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन मंदिरों में कोई चिकित्सीय उपचार या तंत्र-मंत्र नहीं होता, बल्कि माता की कृपा से यहां आए लकवाग्रस्त मरीज अपने आप ठीक हो जाते हैं। इनमें से एक मंदिर ऐसा है जहां माता के मंदिर के बाहर लकवाग्रस्त मरीजों के व्हील चेयर कबाड़ की तरह इकट्ठा किए हुए दिखाई देते हैं।
राजस्थान में तीन ऐसे मंदिर हैं, जहां मां भगवती की कृपा से लकवे के मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं। इनमें से एक बिजासन माता का मंदिर है, जो टोंक जिले के देवली शहर के पास बसे गांव कुचलवाड़ा में है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां आने से लकवे जैसे गंभीर रोग से पीड़ित व्यक्ति भी स्वस्थ हो जाते हैं। लकवा से ग्रसित लोग दूर-दूर से अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए यहां आते हैं और ठीक होकर लौटते हैं। इस मंदिर की लोकप्रियता के कारण श्रद्धालुओं की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है।
अगला मंदिर चित्तौड़गढ़ में स्थित आवरी माता का मंदिर है, जो लकवे के उपचार के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर चित्तौड़गढ़ के पास बसे गांव आसावरा में है और 750 साल से अधिक पुराना है। कहा जाता है कि जो भी लकवे से ग्रस्त मरीज मां आवारी के दर्शन करता है, वह मंदिर से अपने पैरों पर लौटता है। इस मान्यता के चलते श्रद्धालुओं का मां आवारी पर विश्वास आज तक कायम है।
राजस्थान में ही उदयपुर से 60 किमी दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित ईडाणा माता मंदिर भी अपने चमत्कार के लिए जाना जाता है। यहां माता ईडाणा स्वयं अग्निस्नान करती हैं और उनके इस अद्भुत रूप को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। यह अग्नि किसके द्वारा प्रज्वलित की जाती है, यह किसी को नहीं पता। मां अग्निस्नान महीने में 2 से 3 बार करती हैं और इसका कोई निश्चित समय नहीं होता। इतना ही नहीं, मां अग्निस्नान करने के बाद खुद-ब-खुद शांत हो जाती हैं। मां ईडाणा भी भक्तों को शारीरिक रोगों से मुक्त करती हैं। भक्त लकवे की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर को उदयपुर मेवाड़ की महारानी के नाम पर स्थापित किया गया है।