क्या राजद की कार्यकारिणी बैठक में रणनीति पर चर्चा होगी? मनोज झा ने मतदाता सूची पर उठाए सवाल

सारांश
Key Takeaways
- राजद की कार्यकारिणी बैठक में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी।
- मनोज झा ने मतदाता सूची की खामियों पर सवाल उठाए।
- महागठबंधन की रणनीति को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा।
- भाषाई विवाद पर मनोज झा का महत्वपूर्ण बयान।
- चुनावी वर्ष में राजनीतिक रणनीतियों की आवश्यकता।
पटना, 4 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने शुक्रवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। मनोज झा का कहना है कि यह बैठक कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश अब चुनावी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस बैठक में राजनीतिक रणनीतियों, आरक्षण नीति और कई अन्य प्रमुख मुद्दों पर प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
मनोज झा ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि आज हमारी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है और कल राष्ट्रीय परिषद और खुला अधिवेशन आयोजित होगा। इस दौरान कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर चर्चा की जाएगी, और पार्टी सामूहिक रूप से इन विषयों पर विचार-विमर्श कर ठोस निर्णय लेगी। बैठक में महागठबंधन की आगामी रणनीति, सामाजिक न्याय के एजेंडे को सशक्त बनाने और इंडिया गठबंधन को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने मतदाता सूची में सुधार की प्रक्रिया को सही दिशा में बताया। इस पर मनोज झा ने सवाल उठाते हुए कहा कि उनका बयान अक्सर स्रोतों के हवाले से ही आता है, लेकिन आज एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट में बड़ी खामियों की चर्चा की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि हमने चुनाव आयोग से मुलाकात की थी, लेकिन वे शंकाओं को दूर करने में पूरी तरह असफल रहे हैं। आयोग से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि मतदाता सूची की त्रुटियां लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के बीच ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। इस पर मनोज झा ने कहा कि ओवैसी साहब को मैं बस इतना कहूंगा कि हर चुनाव का एक अलग मिजाज होता है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ने पहले ही लंबी लकीर खींच दी है। कई बार बिना चुनाव लड़े ही मकसद पूरा हो सकता है। आशा है कि ओवैसी साहब इस बात को समझेंगे।
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर उठे सियासी बवाल पर भी मनोज झा ने कहा कि भाषाई विवाद हमें फिर से 1960 के दशक में ले जा रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री और महाराष्ट्र के कुछ नेताओं के हालिया बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि भाषाओं का आपसी संबंध बहनों जैसा होता है। यदि आप इस संबंध को नहीं समझते, तो आप किसी भाषा के सच्चे प्रेमी नहीं हो सकते। कोई भी भाषा अकेले नहीं पनपती, वह अन्य भाषाओं के साथ पूरक बनकर ही आगे बढ़ती है। प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग भाषा का असली स्वरूप है।