क्या मानसून सत्र में राज्यसभा का केवल 38.88 फीसदी कामकाज हुआ?

सारांश
Key Takeaways
- राज्यसभा में 38.88% कामकाज हुआ।
- 15 सरकारी विधेयक पारित किए गए।
- सत्र में 285 प्रश्न पूछने का अवसर था, लेकिन केवल 14 प्रश्न पूछे गए।
- उपसभापति ने विघ्नों पर चिंता जताई।
- ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा हुई।
नई दिल्ली, 21 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। संसद का वर्तमान सत्र गुरुवार को समाप्त हो गया। राज्यसभा के इस 268वें सत्र में निर्धारित समय के मुकाबले केवल 38.88 फीसदी कामकाज हो सका। मानसून सत्र में अधिकतर समय नारेबाजी और हंगामे में बीत गया।
सत्र समाप्त होने के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण ने कहा कि अध्यक्ष मंडल की हर संभव कोशिशों के बावजूद सत्र लगातार विघ्न और स्थगन का शिकार बना रहा।
मानसून सत्र की शुरुआत में 21 जुलाई को तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य को इस निर्णय का कारण बताया।
राज्यसभा में मानसून सत्र की कुल कार्यवाही 41 घंटे 15 मिनट तक चली, जिसमें उत्पादकता केवल 38.88 प्रतिशत रही।
उपसभापति का मानना है कि यह एक गंभीर आत्ममंथन का विषय है। इससे न केवल बहुमूल्य संसदीय समय का नाश हुआ, बल्कि कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषयों पर चर्चा का अवसर भी चूक गया। इस सत्र में सदस्यों को 285 प्रश्न, 285 शून्यकाल नोटिस और 285 विशेष उल्लेख14 प्रश्न, 7 शून्यकाल नोटिस और 61 विशेष उल्लेख ही उठाए जा सके।
उपसभापति ने खेद व्यक्त किया कि अध्यक्ष मंडल की ओर से सार्थक एवं अवरोध-मुक्त चर्चा कराने के प्रयासों के बावजूद यह सत्र बार-बार के व्यवधानों के कारण बाधित हुआ। हालांकि, इस सत्र में 15 सरकारी विधेयक पारित या वापस किए गए।
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले के जवाब में भारत द्वारा किए गए साहसी एवं निर्णायक 'ऑपरेशन सिंदूर' पर दो दिन तक विशेष चर्चा हुई, जिसमें 64 सदस्यों ने भाग लिया। इस चर्चा का उत्तर गृह मंत्री ने दिया।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार पर स्वप्रेरणा से वक्तव्य दिया, जिसने भारत की बढ़ती आर्थिक साझेदारी पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। सदन को उपराष्ट्रपति पद की रिक्ति की सूचना दी गई। 24 जुलाई 2025 को कार्यकाल समाप्त करने वाले तमिलनाडु से छह सदस्यों को विदाई दी गई।
उपसभापति ने आशा जताई कि इस सत्र से मिले सबक भविष्य में और अधिक रचनात्मक व सार्थक विमर्श का मार्ग प्रशस्त करेंगे। यह सत्र विधायी दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, लेकिन उत्पादकता के मामले में निराशाजनक भी रहा, जो भविष्य में बेहतर कार्य संस्कृति की ओर संकेत करता है।