क्या ब्रह्म-वैवर्त पुराण में वर्णित रमा एकादशी की महिमा है? जानें इसका फल और महत्व

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क्या ब्रह्म-वैवर्त पुराण में वर्णित रमा एकादशी की महिमा है? जानें इसका फल और महत्व

सारांश

रमा एकादशी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। यह व्रत भक्तों को अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति और सुख-शांति का आश्वासन देता है। जानें इसकी महिमा और पौराणिक कथा के माध्यम से इसके महत्व के बारे में।

Key Takeaways

  • रमा एकादशी का व्रत जीवन में सकारात्मकता लाता है।
  • यह पापों का नाश करता है।
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • यह आस्था और भक्ति का पर्व है।
  • रमा एकादशी से आध्यात्मिक उन्नति होती है।

नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में रमा एकादशी का व्रत किया जाएगा। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।

रमा एकादशी की महिमा का उल्लेख ब्रह्म-वैवर्त पुराण और पद्म पुराण में मिलता है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर के संवाद के माध्यम से इसके महत्व को बताया गया है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, पांडव राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कार्तिक मास की एकादशी का महत्व पूछा। श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, "हे राजन, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं। यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।"

भगवान ने एकादशी को लेकर कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में राजा मुचुकुंद भगवान विष्णु के परम भक्त और सत्यनिष्ठ शासक थे। वह अपने राज्य में रमा एकादशी का व्रत अनिवार्य रूप से करवाते थे। उनके राज्य में सभी लोग इस दिन निर्जला व्रत रखते और भगवान की भक्ति में लीन रहते। मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा का विवाह राजकुमार शोभन से होता है, जो शारीरिक रूप से कमजोर होता है। फिर भी, शोभन ने ससुर के नियम और अपनी भक्ति के बल पर रमा एकादशी का व्रत रखा। कठिन व्रत के कारण द्वादशी के दिन पारण से पहले उनकी मृत्यु हो गई। चंद्रभागा दुखी हुई, लेकिन उसका भगवान पर विश्वास अटल रहा। भगवान विष्णु ने शोभन की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अगले जन्म में मंदराचल पर्वत का राजा बना दिया। जब राजा मुचुकुंद ने अपने दामाद को राजा के रूप में देखा, तो चंद्रभागा को यह समाचार दिया। चंद्रभागा ने भी रमा एकादशी का व्रत रखा और पुण्य प्राप्त किया। अंततः वह अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगीं।

रमा एकादशी केवल व्रत नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का पर्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और शांति लाता है। भक्त सुबह स्नान कर, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेते हैं और दिनभर भक्ति-भाव से पूजा करते हैं।

रमा एकादशी का व्रत हर वर्ग के लिए कल्याणकारी है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है, बल्कि जीवन को सुखमय बनाता है।

Point of View

बल्कि यह सामाजिक एकता और भक्ति भाव को भी प्रोत्साहित करता है। इसके माध्यम से हम अपने भीतर की सकारात्मकता को पहचानते हैं और अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। यह पर्व हमें एकजुट होकर भगवान की पूजा करने का अवसर प्रदान करता है।
NationPress
16/10/2025

Frequently Asked Questions

रमा एकादशी का व्रत कैसे किया जाता है?
इस दिन भक्त सुबह स्नान कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं।
रमा एकादशी की महिमा क्या है?
यह व्रत अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति और सुख-शांति का आश्वासन देता है।
क्या रमा एकादशी का व्रत सभी के लिए है?
हाँ, यह व्रत हर वर्ग के लिए कल्याणकारी है।