क्या सासाराम में बदलते समीकरणों की कहानी दिलचस्प है?
सारांश
Key Takeaways
- सासाराम का ऐतिहासिक महत्व और आज की राजनीति में इसकी भूमिका।
- जातिगत पहचान चुनावी नतीजों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।
- भाजपा और राजद के बीच कड़ा मुकाबला।
- सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर ध्यान देने की आवश्यकता।
- 2024 के चुनावों में संभावित बदलाव।
पटना, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार का सासाराम, जो पूर्व में शेरशाह सूरी की राजधानी के रूप में जाना जाता था, वर्तमान में राज्य की राजनीति में एक विशेष पहचान बना चुका है। 16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी ने मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर सत्ता पर कब्जा किया और सासाराम को सूर वंश की राजधानी बनाया। उनके शासनकाल को भारतीय प्रशासनिक इतिहास का एक गौरवमयी युग माना जाता है। कर प्रणाली, डाक सेवाओं और ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटी रोड) जैसी कई ऐतिहासिक परियोजनाओं की नींव यहीं रखी गई थी।
1972 में सासाराम को रोहतास जिला का मुख्यालय बनाया गया। यह क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध होने के साथ-साथ आज भी बिहार की राजनीति, शिक्षा और सामाजिक चेतना का केंद्र माना जाता है। यहाँ की उच्च साक्षरता दर के बावजूद, यह विधानसभा क्षेत्र जातिगत मतदान प्रवृत्तियों से अछूता नहीं है।
यह विधानसभा सीट सासाराम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जो अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। यह लोकसभा क्षेत्र कुल 6 विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बना है, जिसमें 3 सासाराम जिले और 3 कैमूर जिले में स्थित हैं।
सासाराम विधानसभा क्षेत्र सामान्य श्रेणी का है, लेकिन यहाँ कुशवाहा (कोइरी) समुदाय का राजनीतिक प्रभाव सबसे अधिक रहा है। 1980 से 2015 तक, इस सीट से चुने गए या उपविजेता बने विधायक लगभग सभी इसी समुदाय से थे। चुनावी इतिहास यह दर्शाता है कि सासाराम में मतदाता दल या विचारधारा से अधिक जातीय पहचान को प्राथमिकता देते हैं। इसके अलावा, भूमिहार, यादव, दलित और मुस्लिम मतदाताओं की भी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
सासाराम विधानसभा की स्थापना 1957 में हुई थी और अब तक यहाँ 17 विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। समाजवादी धारा से जुड़े दलों ने 10 बार जीत दर्ज की है। भाजपा ने 5 बार और कांग्रेस ने 2 बार जीत हासिल की है। कांग्रेस इस क्षेत्र में स्थायी जनाधार बनाने में सफल नहीं हो पाई।
साल 2000 से यह सीट भाजपा और राजद के बीच कड़े मुकाबले का केंद्र बन गई है। भाजपा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की, लेकिन राजद ने 2015 और 2020 दोनों चुनावों में सफलता प्राप्त की। 2020 में राजद के उम्मीदवार राजेश कुमार गुप्ता ने जदयू के अशोक कुमार को हराकर राजद के वर्चस्व की पुष्टि की। हालाँकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाई।
चुनाव आयोग के द्वारा 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, सासाराम की कुल जनसंख्या 6,09,797 है। इसमें 3,12,484 पुरुष और 2,97,313 महिलाएं शामिल हैं। कुल मतदाताओं की संख्या 3,57,849 है। मतदाताओं में 1,85,909 पुरुष, 1,71,934 महिलाएं और 6 थर्ड जेंडर शामिल हैं।
ऐतिहासिक और प्रशासनिक दृष्टि से समृद्ध सासाराम आज भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। यहाँ की सड़क और सिंचाई सुविधाएँ कमजोर हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे को लेकर ग्रामीण इलाकों में असंतोष बना हुआ है। रोजगार और पलायन के मुद्दे लगातार बने हुए हैं। शहर के आसपास जलजमाव और सफाई की समस्या भी स्थानीय चुनावी मुद्दों में शामिल है।