क्या शनिश्चरी अमावस्या पर विधि-विधान से पूजा करें? पितृ होते हैं प्रसन्न

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क्या शनिश्चरी अमावस्या पर विधि-विधान से पूजा करें? पितृ होते हैं प्रसन्न

सारांश

शनिश्चरी अमावस्या, जो 23 अगस्त को है, एक महत्वपूर्ण दिन है जिसमें पितरों की पूजा और तर्पण का विशेष महत्व है। इस दिन की पूजा विधि और मान्यताएँ जानें और अपने पितरों की कृपा प्राप्त करें।

Key Takeaways

  • शनिश्चरी अमावस्या पर पितरों का तर्पण करना विशेष लाभकारी है।
  • इस दिन इष्टि अनुष्ठान का महत्व है।
  • राहुकाल के समय शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
  • दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • गंगा स्नान से पापों का नाश होता है।

नई दिल्ली, 22 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। इस वर्ष भादो की अमावस्या शनिवार (23 अगस्त) को है, जिसे शनिश्चरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। दृक पंचांग के अनुसार, यह अमावस्या 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगी।

मान्यता के अनुसार, इस दिन अपने पितरों का तर्पण करने से कई कष्टों से मुक्ति मिलती है। चूंकि यह शनिश्चरी है, इसलिए शनि महाराज और पितरों की समान रूप से पूजा की जाती है। पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति हेतु अमावस्या के सभी दिन श्राद्ध की रस्में करने के लिए उपयुक्त होते हैं। कालसर्प दोष निवारण की पूजा के लिए भी यह दिन विशेष रूप से शुभ है। अमावस्या को अमावस या अमावसी के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन इष्टि अनुष्ठान भी किया जाता है। हिंदू कैलेंडर में इष्टि और अन्वाधान का विशेष उल्लेख किया गया है। अन्वाधान अनुष्ठान का समापन इष्टि पर किया जाता है। संस्कृत में अन्वाधान का अर्थ है अग्निहोत्र (हवन या होम) करने के बाद पवित्र अग्नि को जलाए रखने के लिए ईंधन जोड़ना। इस दिन, वैष्णव एक दिवसीय उपवास रखते हैं और इस क्रिया को करते हैं।

इष्टि, जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है, इच्छाओं से जुड़ा है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसका आयोजन भक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए 'हवन' की तरह करते हैं। यह कुछ घंटों तक चलता है। शनिश्चरी अमावस्या के दिन इसका विशेष महत्व है।

यदि कोई शुभ कार्य करना चाहते हैं, तो राहुकाल का ध्यान रखना आवश्यक है। इस समय कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। राहुकाल प्रातः 9 बजकर 9 मिनट से 10:46 (प्रातः) तक रहेगा। इस दिन चन्द्रमा सिंह राशि में संचार करेंगे और सूर्योदय 05:55 प्रातः और सूर्यास्त 06:52 सायं होगा।

हिंदू कैलेंडर में इष्टि और अन्वाधान महत्वपूर्ण घटनाएं मानी जाती हैं। हिंदू धर्म के अनुयायी, विशेषकर वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी, अन्वाधान के दिन एक दिवसीय उपवास का पालन करते हैं और इष्टि के दिन यज्ञ सम्पन्न करते हैं।

इष्टि और अन्वाधान की तिथियों को जानने के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं, जिससे अनुयायियों में अनावश्यक संदेह उत्पन्न होता है। द्रिक पञ्चाङ्ग के पण्डित जी ने इष्टि और अन्वाधान की व्यापक रूप से स्वीकृत तिथियाँ प्रदान की हैं, जो अधिकांश अनुयायियों के लिए मान्य होंगी।

अमावस्या तिथि को पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। अधिक से अधिक पूजा-पाठ करना चाहिए और इस अवसर पर कोई नया कार्य नहीं करना चाहिए। शनिश्चरी अमावस्या के दिन, जो लोग सच्चे मन से भगवान शनि की पूजा करते हैं और गंगा स्नान करते हैं, उनके सारे पाप समाप्त हो जाते हैं।

इस दिन सुबह स्नान के बाद पितरों की तस्वीर के सामने दीपक जलाकर भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को उनकी कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यता है कि पीपल के पेड़ में पितरों का वास होता है। इसलिए शनिश्चरी अमावस्या को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर पेड़ की परिक्रमा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और आर्थिक तंगी दूर होती है। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा का शमन होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

Point of View

यह कहना उचित होगा कि शनिश्चरी अमावस्या का महत्व हमारे संस्कृति में गहरा है। इस दिन पितरों की पूजा और तर्पण से न केवल धार्मिक कर्तव्यों का पालन होता है, बल्कि यह परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। सभी को इस दिन अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

शनिश्चरी अमावस्या पर क्या करना चाहिए?
इस दिन पितरों का तर्पण करें, शनि महाराज की पूजा करें और विशेष रूप से इष्टि अनुष्ठान करें।
राहुकाल का समय क्या है?
राहुकाल प्रातः 9 बजकर 9 मिनट से 10:46 तक रहेगा, इस समय शुभ कार्यों से बचें।