क्या श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर में भगवान विष्णु के दो रूपों की पूजा होती है?

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क्या श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर में भगवान विष्णु के दो रूपों की पूजा होती है?

सारांश

भगवान विष्णु के वराह और नरसिंह अवतार की पूजा के लिए प्रसिद्ध श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर विशाखापत्तनम में है। यहाँ साल भर चंदन का लेप चढ़ाया जाता है, जिससे भगवान के उग्र स्वरूप को संतुलित किया जा सके। जानें इस मंदिर की विशेषताएँ।

Key Takeaways

  • श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक है।
  • भगवान विष्णु के वराह और नरसिंह अवतार की पूजा होती है।
  • प्रतिमा पर सालभर चंदन का लेप चढ़ाया जाता है।
  • मंदिर की निर्माण शैली ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाती है।
  • यह स्थल पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली, ११ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान विष्णु ने समय-समय पर पृथ्वी की रक्षा करने और राक्षसों का विनाश करने के लिए विभिन्न अवतार धारण किए हैं। आइए हम वराह और नरसिंह अवतार के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भगवान विष्णु के अलग-अलग रूपों के मंदिर हैं, लेकिन विशाखापत्तनम में एक विशेष मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के इन दोनों स्वरूपों की एक साथ पूजा की जाती है।

श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में सिम्हाचलम पहाड़ी पर समुद्र तल से ८०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ भगवान विष्णु के वराह और नरसिंह अवतार की संयुक्त पूजा की जाती है। मंदिर में प्रतिमा को साल भर चंदन के लेप से ढका जाता है, और केवल अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों को उनका वास्तविक रूप देखने का अवसर मिलता है। बाकि दिनों में चंदन के लेप के कारण प्रतिमा शिवलिंग के समान प्रतीत होती है। भगवान के बिना चंदन के रूप को 'निजरूप दर्शन' कहा जाता है, जो साल में केवल एक बार ही संभव होता है।

प्रतिमा को चंदन के लेप से ढकने का उद्देश्य यह है कि भगवान के वराह और नरसिंह अवतार की ऊर्जा अत्यधिक उग्र है। इस ऊर्जा को संतुलित करने के लिए प्रतिमा पर रोजाना चंदन का लेप लगाया जाता है, ताकि भगवान को ठंडक मिले और वे भक्तों को शांत रूप में दर्शन दे सकें। यह प्रथा लंबे समय से चली आ रही है।

इन दोनों रूपों के पीछे विभिन्न पौराणिक कथाएँ हैं। भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नरसिंह का अवतार लेकर राक्षस हिरण्यकशिपु का वध किया, वहीं वराह अवतार लेकर उन्होंने राक्षस हिरण्याक्ष को हराकर पृथ्वी को बचाया।

मंदिर के निर्माण को लेकर कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि ११वीं सदी में राजा श्री कृष्णदेवराय ने इस मंदिर का निर्माण कराया था, जबकि १३वीं सदी में पूर्वी गंग वंश के नरसिंह प्रथम का भी योगदान देखा जाता है। मंदिर की नक्काशी और गोपुरम दोनों सदी की शिल्पकला को दर्शाते हैं। समय के साथ यह मंदिर विभिन्न राज्यों के संरक्षण में रहा और धीरे-धीरे इसका निर्माण बढ़ता गया। यहाँ जयस्तंभ भी स्थापित है, जिसे कलिंग के राजा कृष्णदेवराय ने युद्ध के दौरान बनवाया था। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और विभिन्न युगों का संरक्षण भी करता है। यह स्थल पर्यटन के लिए भी विशेष है, जहाँ भक्त भगवान के अद्भुत दो रूपों के दर्शन के लिए आते हैं।

Point of View

बल्कि यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी संरक्षण करता है।
NationPress
11/12/2025

Frequently Asked Questions

श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर कहाँ स्थित है?
यह मंदिर आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में सिम्हाचलम पहाड़ी पर स्थित है।
भगवान विष्णु के कौन से अवतार यहाँ पूजा जाते हैं?
यहाँ भगवान विष्णु के वराह और नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है।
मंदिर में चंदन का लेप क्यों लगाया जाता है?
चंदन का लेप भगवान की उग्र ऊर्जा को संतुलित करने के लिए लगाया जाता है।
निजरूप दर्शन क्या है?
निजरूप दर्शन भगवान के बिना चंदन के रूप को देखना है, जो साल में एक बार होता है।
इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?
मंदिर का निर्माण ११वीं सदी में राजा श्री कृष्णदेवराय ने करवाया था।
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