क्या बिहार विधानसभा चुनाव में सिंहेश्वर की आस्था, इतिहास और आरक्षण की सियासत में रोमांचक जंग होगी?

सारांश
Key Takeaways
- सिंहेश्वर सीट का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है।
- बाढ़ और कृषि संकट मुख्य मुद्दे हैं।
- राजनीतिक मुकाबला मुख्य रूप से राजद और जदयू के बीच है।
- मतदाता संख्या 3,29,079 है।
- लोजपा का प्रभाव निर्णायक हो सकता है।
पटना, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मधेपुरा जिले की सिंहेश्वर विधानसभा सीट एक बार फिर चुनावी चर्चा का विषय बन गई है। यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और इसे सामाजिक-धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। 2008 के परिसीमन के बाद, यह सीट मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से हटकर सुपौल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बन गई। सिंहेश्वर विधानसभा क्षेत्र में तीन प्रमुख प्रखंड शामिल हैं।
सिंहेश्वर को धार्मिक रूप से एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। यहां का सिंहेश्वरनाथ महादेव मंदिर, जिसे 'कामना लिंग' के नाम से जाना जाता है, लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
मान्यता है कि यहीं पर ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिसके परिणामस्वरूप श्रीराम और उनके भाइयों का जन्म हुआ। इस क्षेत्र का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है और यह शिव उपासना का प्रमुख केंद्र है।
मंदिर के परिसर में मां सिंहेश्वरी के रूप में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की उपस्थिति, त्रिदेवों की स्थापना और भगवान बुद्ध की मूर्ति इस धार्मिक स्थल की विविधता को दर्शाते हैं।
भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र कोसी नदी के किनारे स्थित है और बाढ़ के साथ जीने की मजबूरी यहां की जीवनशैली का हिस्सा बन चुकी है। कृषि यहां की मुख्य आजीविका है, जिसमें धान, मक्का, गेहूं और दालें शामिल हैं। औद्योगिक विकास सीमित है, जिसके कारण सीमांत किसान और भूमिहीन मजदूर अक्सर आजीविका की तलाश में पलायन करते हैं।
राजनीतिक दृष्टि से, सिंहेश्वर विधानसभा सीट की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। 1977 में पहली बार चुनाव हुए और अब तक 12 बार चुनाव संपन्न हो चुके हैं, जिनमें 1981 का उपचुनाव भी शामिल है। 2005 से 2015 तक लगातार चार बार जदयू ने यहां जीत दर्ज की, लेकिन 2020 के चुनाव में यह सिलसिला टूट गया। उस वर्ष राजद के चंद्रहास चौपाल ने जदयू के नरेंद्र नारायण यादव को 5,573 मतों से हराकर नया इतिहास रच दिया। यह उन 25 सीटों में से एक थी, जहां चिराग पासवान की लोजपा ने एनडीए से अलग होकर केवल जदयू को नुकसान पहुंचाने की रणनीति अपनाई थी। दिलचस्प बात यह है कि लोजपा को मिले वोटों की संख्या राजद की जीत के अंतर से 34 ज्यादा थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि त्रिकोणीय मुकाबला यहां निर्णायक साबित हुआ।
राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो सिंहेश्वर में मुकाबला मुख्य रूप से राजद और जदयू के बीच बना हुआ है। चंद्रहास चौपाल 2020 की जीत के बाद फिर से मैदान में उतरने को तैयार हैं, वहीं जदयू इस सीट को पुनः जीतने के लिए रणनीति बना रही है। भाजपा की भूमिका सहयोगी दल के रूप में है, क्योंकि यह सीट उसके कोर वोट बैंक में नहीं आती। लोजपा (रामविलास) की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहेगी, क्योंकि वह निर्णायक वोटों में सेंध लगा सकती है।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2024 में सिंहेश्वर विधानसभा की कुल अनुमानित जनसंख्या 5,41,506 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,78,118 और महिलाओं की संख्या 2,63,388 है। वहीं, मतदाताओं की कुल संख्या 3,29,079 है, जिसमें 1,70,755 पुरुष, 1,58,315 महिलाएं और 9 थर्ड जेंडर हैं।
2025 के चुनाव में मुद्दे वही रहेंगे जो वर्षों से यहां की जमीनी हकीकत हैं। बाढ़ नियंत्रण, पलायन रोकना, कृषि संकट, दलित समाज के अधिकार और धार्मिक पर्यटन का समुचित विकास। हालांकि, विकास के नाम पर मंदिर क्षेत्र में आंशिक सुधार हुए हैं, परंतु बड़े पैमाने पर रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में अब भी व्यापक सुधार की आवश्यकता है।