क्या सुभाष चंद्र बोस ने 'असहयोग आंदोलन' के बाद 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की?

सारांश
Key Takeaways
- सुभाष चंद्र बोस का जीवन संघर्ष और बलिदान की प्रेरणा है।
- उन्होंने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की।
- उनका मानना था कि आजादी सशस्त्र क्रांति के माध्यम से मिलती है।
- 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा आज भी प्रेरणादायक है।
- उनकी मृत्यु का रहस्य आज भी अनसुलझा है।
नई दिल्ली, 17 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय नायकों में से एक थे। महात्मा गांधी के 'असहयोग आंदोलन' से मतभेद के चलते उन्होंने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की। उनका मानना था कि आजादी के लिए सशस्त्र बलों का होना आवश्यक है।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ। उनका बचपन एक समृद्ध और शिक्षित परिवार में बीता। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे, और मां प्रभावती देवी धार्मिक विचारों वाली थीं। सुभाष ने अपनी पढ़ाई में सदैव उत्कृष्टता दिखाई और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की। लेकिन उनके मन में देश की गुलामी का दर्द गहराई से बसा था। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की नौकरी ठुकरा दी, क्योंकि वे अंग्रेजी शासन के अधीन काम नहीं करना चाहते थे। इसके बजाय, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का निर्णय लिया। सुभाष चंद्र बोस का विश्वास था कि स्वतंत्रता मांगने से नहीं, बल्कि छीनने से मिलती है।
उन्होंने कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और जल्द ही युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गए। लेकिन महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से मतभेद होने पर उन्होंने 1939 में कांग्रेस छोड़ दी और 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की। 'फॉरवर्ड ब्लॉक' ने भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति पर जोर दिया। इसने युवाओं को संगठित कर अंग्रेजी शासन के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बोस की दृष्टि में आजादी के लिए सशस्त्र क्रांति आवश्यक थी।
सुभाष चंद्र बोस ने 1941 में ब्रिटिश सरकार के चंगुल से भागकर जर्मनी और फिर जापान का रुख किया। वहां उन्होंने 'आजाद हिंद फौज' का गठन किया, जिसमें हजारों भारतीय सैनिक शामिल हुए। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का उनका नारा हर भारतीय के दिल में जोश भर देता था। 'आजाद हिंद फौज' ने भारत के पूर्वी मोर्चे पर अंग्रेजों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं। नेताजी की रणनीति और नेतृत्व ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। हालांकि, 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में 'आजाद हिंद फौज' को हार का सामना करना पड़ा।
18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु की खबर आई, लेकिन यह रहस्य आज भी अनसुलझा है। कुछ लोग मानते हैं कि वे जीवित रहे और गुप्त रूप से भारत लौटे।
सुभाष चंद्र बोस की वीरता, दृढ़ संकल्प और देशभक्ति की कहानियां आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजती हैं। नेताजी का जीवन एक ऐसी मिसाल है जो हमें सिखाता है कि स्वतंत्रता के लिए कितना बड़ा बलिदान देना पड़ सकता है। उन्होंने दिखाया कि देशभक्ति और बलिदान की कोई सीमा नहीं होती। उनकी वीरता और विचार आज भी देश के करोड़ों युवाओं को प्रेरित करते हैं कि वे अपने देश के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करें।