क्या सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को वर्षों से लंबित फैसलों पर नोटिस जारी किया?

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क्या सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को वर्षों से लंबित फैसलों पर नोटिस जारी किया?

सारांश

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है, जिसमें 10 अभियुक्तों की याचिकाओं के लंबित फैसलों पर चिंता व्यक्त की गई है। क्या यह निर्णय नागरिकों के 'त्वरित न्याय' के अधिकार को प्रभावित करेगा? जानें इस महत्वपूर्ण मामले के बारे में।

Key Takeaways

  • सुप्रीम कोर्ट ने 10 अभियुक्तों की याचिकाओं पर झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया।
  • फैसले में देरी नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है।
  • संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित न्याय का अधिकार है।

रांची/नई दिल्ली, 14 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए 10 अभियुक्तों की याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ 2018-19 में झारखंड हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं, जिन पर 2022-23 में सुनवाई पूरी होने के बावजूद फैसला अब तक लंबित है।

इन 10 अभियुक्तों में से छह को निचली अदालत ने मौत की सजा और चार अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इनमें से 9 लोग रांची के होटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में बंद हैं, जबकि एक व्यक्ति हाल ही में जमानत पर दुमका जेल से बाहर आया है।

शीर्ष अदालत में याचिकाओं की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने यह देखा कि सभी 10 अभियुक्तों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखने वाले न्यायाधीश एक ही हैं।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता फौजिया शकील ने कहा कि सुनवाई के बाद निर्णय वर्षों तक लंबित रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। संविधान में 'त्वरित न्याय' पाने का अधिकार भी नागरिकों को दिया गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि फैसले में देरी के कारण मानसिक पीड़ा और मौत की सजा के निष्पादन में देरी से उत्पन्न तनाव का जिक्र किया। याचिका में एचपीए इंटरनेशनल बनाम भगवानदास मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख किया गया, जिसमें लंबे समय तक निर्णय सुरक्षित रखने की प्रथा पर चिंता जताई गई थी।

याचिका में झारखंड हाईकोर्ट नियमावली (2001) का हवाला देते हुए कहा गया है कि दलीलें पूरी होने के 6 सप्ताह के भीतर निर्णय सुनाया जाना चाहिए। अधिवक्ता ने सजा निलंबित करने के अनुरोध पर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई दोषी 8 साल की वास्तविक सजा काट चुका है, तो उसे ज्यादातर मामलों में जमानत मिलनी चाहिए।

Point of View

बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर नागरिक को त्वरित और सटीक न्याय मिले।
NationPress
21/10/2025

Frequently Asked Questions

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को क्यों नोटिस जारी किया?
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अभियुक्तों की याचिकाओं के लंबित फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए झारखंड हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है।
क्या यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है?
हां, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सुनवाई के बाद फैसले को वर्षों तक लंबित रखना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।