क्या तहसीन पूनावाला ने 'संचार साथी' ऐप पर चिंता जताई?
सारांश
Key Takeaways
- हर नए मोबाइल में 'संचार साथी' ऐप का होना अनिवार्य।
- सरकार को प्राइवेसी अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
- अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है।
नई दिल्ली, २ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। दूरसंचार मंत्रालय ने हाल ही में एक नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि भारत में निर्मित हर नए मोबाइल फोन में ‘संचार साथी’ ऐप को पूर्व-स्थापित करना अनिवार्य होगा और इसे हटाना संभव नहीं होगा। इस निर्णय ने लोगों में काफी गुस्सा और हैरानी दोनों उत्पन्न कर दी है। इस पर राजनीतिक विश्लेषक और सलाहकार तहसीन पूनावाला ने भी अपनी चिंता व्यक्त की है।
उनका कहना है कि इस परिप्रेक्ष्य में तीन प्रमुख मुद्दे हैं। पहला यह कि सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि एयरपोर्ट्स पर उड़ानों के लिए जीपीएस स्पूफिंग जैसे खतरों की संभावना है। यदि कोई दुश्मन देश साइबर हमले का प्रयास करता है और यह ऐप हर भारतीय के फोन में मौजूद है, चाहे वह सुप्रीम कोर्ट का जज हो, उच्च न्यायालय का जज, या सेना या पुलिस का अधिकारी, तो उसका डेटा आसानी से उस देश तक पहुँच सकता है।
दूसरा, डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के अंतर्गत किसी भी ऐप को उपयोगकर्ता का डेटा साझा करने की अनुमति नहीं है, सिवाय इसके कि यदि कानून प्रवर्तन एजेंसी को आवश्यकता हो, लेकिन इस मामले में स्थिति उल्टी है। यह ऐप सरकार का है, और सरकार किसी भी बहाने से किसी का डेटा, स्थान या चैट्स देख सकती है। यह सीधे तौर पर प्राइवेसी का उल्लंघन है।
तीसरा मुद्दा बैकडोर का है। यदि उपयोगकर्ता ने किसी अनुमति को अस्वीकार किया है, जैसे कि कैमरा या माइक, तो भी इस ऐप के माध्यम से सरकार उस डेटा तक पहुँच सकती है। अर्थात्, आपकी तस्वीरें, चैट्स, कॉल्स और व्यवहार तक सरकार देख सकती है। ऐसे अधिकार किसी लोकतांत्रिक देश में सरकार को नहीं होने चाहिए।
पूनावाला ने यह तुलना करते हुए कहा कि जिन देशों में ऐसे ऐप्स अनिवार्य हैं, जैसे कि चीन, उत्तर कोरिया और रूस, वे लोकतंत्र नहीं हैं। वहीं, अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे लोकतांत्रिक देशों में ऐसा नहीं होता, इसलिए भारत को यह तय करना होगा कि वह किस श्रेणी में रहना चाहता है: लोकतांत्रिक देशों की या उन देशों की, जहाँ प्राइवेसी की कोई कदर नहीं होती।
उनका कहना है कि यह ऐप संविधान के तहत नागरिकों के जीवन और प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन करता है। यदि सरकार चाहती है, तो ऐप ला सकती है, फीचर्स में सुधार कर सकती है, लेकिन इसे स्वैच्छिक होना चाहिए। जो लोग चाहें, ऐप इंस्टॉल करें और जो नहीं चाहते, उन्हें बाध्य न किया जाए।