क्या टीईटी अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार की मांग उचित है?

सारांश
Key Takeaways
- टीईटी परीक्षा शिक्षकों की योग्यता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए है।
- राज्य सरकारें टीईटी के नियमों पर पुनर्विचार की मांग कर रही हैं।
- आरटीई लागू होने के पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्यता पर प्रश्न उठ रहे हैं।
- टीईटी का प्रमाण पत्र आमतौर पर आजीवन मान्य होता है।
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सरकारी शिक्षकों के लिए टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करने की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर अब सवाल उठ रहे हैं। ऑल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन, उत्तर प्रदेश सरकार और तमिलनाडु सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है।
शिक्षक संगठनों और राज्य सरकारों का कहना है कि टीईटी की अनिवार्यता केवल उन शिक्षकों पर लागू होनी चाहिए, जिन्हें 'राइट टू एजुकेशन एक्ट (आरटीई)' लागू होने के बाद नियुक्त किया गया है। उनका तर्क है कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति आरटीई लागू होने से पहले की गई थी, उन पर यह शर्त लागू नहीं होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2025 को अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा था कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य होगा, यदि उनकी सेवा में पांच साल से अधिक का समय बचा है। इसके अतिरिक्त, जिनकी सेवा अवधि पांच साल से कम बची है, उन्हें भी यदि प्रमोशन लेना है, तो उन्हें दो साल के भीतर टीईटी पास करना आवश्यक होगा।
कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा था कि शिक्षकों के लिए समय-समय पर खुद को अपडेट रखना आवश्यक है और टीईटी परीक्षा इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह व्यवस्था शिक्षण की गुणवत्ता बनाए रखने और छात्रों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाया गया एक निर्णय बताया गया था।
टीईटी भारत में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने के लिए आवश्यक योग्यता परीक्षा है। यह परीक्षा दो स्तरों पर होती है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा आयोजित सीटीईटी और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय टीईटी शामिल हैं।
टीईटी परीक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि योग्य और प्रशिक्षित शिक्षक ही स्कूलों में नियुक्त किए जाएं। टीईटी का प्रमाण पत्र शिक्षक बनने के लिए न्यूनतम योग्यता माना जाता है और यह आमतौर पर आजीवन मान्य होता है।