क्या त्रिलोचन शास्त्री की कविताओं में मेहनतकशों की आवाज़ सुनाई देती है?

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क्या त्रिलोचन शास्त्री की कविताओं में मेहनतकशों की आवाज़ सुनाई देती है?

सारांश

त्रिलोचन शास्त्री, एक अद्वितीय कवि, जिन्होंने हिंदी सॉनेट को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। उनकी रचनाएं मेहनतकशों की आवाज़ और सामाजिक असमानताओं की गूंज हैं। जानें उनकी कविता के अनमोल पहलू।

Key Takeaways

  • त्रिलोचन शास्त्री को हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है।
  • उनकी कविताएँ मेहनतकशों की आवाज़ हैं।
  • उन्होंने लगभग 550 सॉनेट रचे।
  • उनकी रचनाएँ सामाजिक असमानताओं को उजागर करती हैं।
  • उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्य धारा के अद्वितीय स्तंभ त्रिलोचन शास्त्री का नाम आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में जीवित है। उनके द्वारा रचित सॉनेट को हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। उनकी कविताओं में मेहनतकशों की पीड़ा और असमानता के प्रति गहरी चेतना प्रकट होती है।

त्रिलोचन शास्त्री का जन्म 20 अगस्त, 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कटघरा चिरानी पट्टी में हुआ था। उनका असली नाम वासुदेव सिंह था। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए और लाहौर से संस्कृत में ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त करने वाले त्रिलोचन ने न केवल कविता, बल्कि कहानी, गीत, गजल और आलोचना के क्षेत्र में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी।

त्रिलोचन शास्त्री को हिंदी सॉनेट (14 पंक्तियों वाली कविता, विशिष्ट तुकबंदी का पालन करती है) का साधक माना जाता है। उन्होंने इस पाश्चात्य छंद को भारतीय परिवेश में ढालकर लगभग 550 सॉनेट रचे, जो हिंदी साहित्य में एक अनूठा योगदान है। उनकी कविताओं में ग्रामीण जीवन, मेहनतकशों की पीड़ा और सामाजिक असमानताओं की गहरी चेतना झलकती है।

उनका पहला कविता संग्रह ‘धरती’ (1945) प्रकाशित हुआ, जिसे आलोचक गजानन माधव मुक्तिबोध ने सराहा। ‘गुलाब और बुलबुल’, ‘उस जनपद का कवि हूं’ और ‘ताप के ताए हुए दिन’ जैसे संग्रहों ने उन्हें व्यापक ख्याति दिलाई। खासतौर पर ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए उन्हें 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

त्रिलोचन की रचनाएं सामान्य जन की आवाज थीं। उनकी कविता ‘उस जनपद का कवि हूं’ में वे लिखते हैं, “उस जनपद का कवि हूं, जो भूखा है, नंगा है, अनजान है, कला नहीं जानता, कैसी होती है, क्या है।” उनकी रचनाओं में अवधी और संस्कृत की प्रेरणा के साथ-साथ आधुनिकता की सुंदरता भी थी।

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी त्रिलोचन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने ‘हंस’, ‘आज’, ‘प्रभाकर’ और ‘समाज’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। वह 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन से जुड़कर हिंदी-उर्दू शब्दकोशों के निर्माण में योगदान दिया।

त्रिलोचन बाजारवाद के घोर विरोधी थे और भाषा में प्रयोगधर्मिता को प्रोत्साहित करते थे। उनका मानना था कि भाषा में जितने प्रयोग होंगे, वह उतनी ही समृद्ध होगी। 9 दिसंबर 2007 को गाजियाबाद में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।

Point of View

बल्कि समाज की गहरी धड़कन है। उनकी रचनाएं आज भी हमें मेहनतकशों की आवाज़ सुनने के लिए मजबूर करती हैं। यह साहित्यिक यात्रा हमें हमारे समाज के वास्तविकता से जोड़ती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

त्रिलोचन शास्त्री का जन्म कब हुआ?
त्रिलोचन शास्त्री का जन्म 20 अगस्त, 1917 को हुआ था।
उनका पहला कविता संग्रह क्या था?
उनका पहला कविता संग्रह ‘धरती’ (1945) था।
त्रिलोचन शास्त्री को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
उन्हें 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कौन सी पत्रिकाओं का संपादन त्रिलोचन ने किया?
उन्होंने ‘हंस’, ‘आज’, ‘प्रभाकर’ और ‘समाज’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।
त्रिलोचन शास्त्री का निधन कब हुआ?
उनका निधन 9 दिसंबर 2007 को हुआ।