क्या है टाइप 1 डायबिटीज? जानें आयुर्वेद से इसके कारण और समाधान
सारांश
Key Takeaways
- टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है।
- इसका मुख्य उपचार इंसुलिन है।
- बच्चों में इसके लक्षण जल्दी पहचानें।
- आयुर्वेदिक उपाय सहायक हो सकते हैं।
- जेनेटिक प्रवृत्ति एक महत्वपूर्ण कारक है।
नई दिल्ली, 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। टाइप 1 डायबिटीज एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें शरीर लगभग पूरी तरह से इंसुलिन का उत्पादन करना बंद कर देता है। जब इंसुलिन नहीं होता, तो ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं पहुँच पाता और रक्त में एकत्रित होने लगता है। यह बीमारी अक्सर बच्चों और किशोरों में देखने को मिलती है।
इसका संबंध एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर से है, जिसमें शरीर अपनी ही पैंक्रियास की बीटा कोशिकाओं पर हमला कर देता है। इस प्रक्रिया के चलते इंसुलिन का स्तर धीरे-धीरे कम होता जाता है और अंततः यह लगभग न के बराबर हो जाता है। कभी-कभी शुरुआत में थोड़ी मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन होता रहता है।
हमारा इम्यून सिस्टम सामान्य स्थितियों में वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षा करता है, लेकिन टाइप 1 डायबिटीज में यह गलती से बीटा कोशिकाओं को हानिकारक मान लेता है। इसे ऑटोइम्यून अटैक कहा जाता है, जिसमें इम्यून सेल्स बीटा कोशिकाओं को धीरे-धीरे समाप्त कर देते हैं।
जेनेटिक प्रवृत्ति इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण है। यदि परिवार में किसी को टाइप 1 डायबिटीज है, तो जोखिम बढ़ जाता है। कुछ वायरल संक्रमण और बचपन में होने वाले वायरस इम्यून सिस्टम को भ्रमित कर सकते हैं।
इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षणों में शामिल हैं: अत्यधिक प्यास, बार-बार पेशाब आना, तेजी से वजन घटना, भूख का बढ़ना, त्वचा का सूखापन, थकान, मूड में बदलाव, घावों का धीरे भरना, और धुंधली दृष्टि। बच्चों में उल्टी और पेट दर्द भी हो सकते हैं।
इसकी पहचान के लिए फास्टिंग ब्लड शुगर, पीपीबीएस, एचबीए1सी, और सी-पेप्टाइड टेस्ट किया जाता है। ऑटोएंटीबॉडी टेस्ट (जीएडी, आईए2, जेडएनटी8) टाइप 1 की पुष्टि करते हैं। डीकेए की स्थिति में रक्त और यूरिन में कीटोन की मात्रा बढ़ जाती है।
आयुर्वेद इसे युवावस्थाजन्य मधुमेह और धातु-क्षयजन्य मानता है। ओज की कमी, अग्नि की कमजोरी और प्रतिरक्षा असंतुलन इसे जन्म देते हैं।
घरेलू उपायों में भोजन को नियमित और हल्का रखना, गुनगुना पानी देना, ठंडी चीजें और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना, हल्का योग और स्ट्रेचिंग करना, और पर्याप्त नींद लेना शामिल है। आयुर्वेदिक सपोर्ट के लिए वासावलेह, अमलकी चूर्ण, गुड्डुची सत्व, और शतावरी घृत जैसी औषधियां वैद्य की सलाह पर दी जा सकती हैं। याद रखें कि मुख्य उपचार इंसुलिन ही है, जबकि घरेलू उपाय केवल सहायक होते हैं।