क्या तमिलनाडु के विल्लुपुरम गांव के पास खुदाई में 1000 साल पुरानी कलाकृतियां मिलीं?

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क्या तमिलनाडु के विल्लुपुरम गांव के पास खुदाई में 1000 साल पुरानी कलाकृतियां मिलीं?

सारांश

तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में पुरातात्विक खोज के दौरान 1000 साल पुरानी चोल काल की कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं। ये कलाकृतियां धार्मिक विविधता और कलात्मक उत्कृष्टता के प्रतीक हैं। इस खोज ने क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ा दिया है। जानें कैसे इन मूर्तियों ने इतिहास के नए अध्याय को खोला।

Key Takeaways

  • तमिलनाडु में 1,000 साल पुरानी चोल काल की कलाकृतियां मिलीं।
  • कलाकृतियों में वैष्णवी देवी और कौमारी की मूर्तियां शामिल हैं।
  • इस खोज ने चोलों के शासनकाल में कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाया।
  • उचित संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
  • यह खोज धार्मिक विविधता का प्रतीक है।

चेन्नई, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के कूटेरीपट्टू के निकट एक पुरातात्विक खोज में लगभग 1,000 साल पुरानी चोल काल की पत्थर की कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं।

इन प्राचीन कलाकृतियों की पहचान हाल ही में विल्लुपुरम के इतिहासकार सेनगुट्टुवन द्वारा किए गए एक क्षेत्रीय सर्वेक्षण के दौरान की गई। ये कलाकृतियां अलाग्रामम गांव और इसके आस-पास की जगहों पर मिली हैं, जो अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

इन कलाकृतियों में वैष्णवी देवी, कौमारी और एक बौद्ध आकृति की जटिल नक्काशीदार मूर्तियां शामिल हैं, जिन्हें लगभग 10वीं शताब्दी ईस्वी का माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज इस क्षेत्र की धार्मिक विविधता और चोलों के शासनकाल में कलात्मक उत्कृष्टता पर नई रोशनी डालती है।

चिकोडी स्ट्रीट जंक्शन पर वैष्णवी देवी की आधी दबी हुई मूर्ति मिली है। देवी को खूबसूरती से विराजमान दिखाया गया है, उनकी चार भुजाएं विशिष्ट विशेषताओं से युक्त हैं।

इस मूर्ति की विस्तृत नक्काशी और शांत भाव प्रारंभिक मध्ययुगीन तमिल कला की शैलीगत सटीकता को दर्शाती है। इसके पास ही चेल्लियाम्मन मंदिर के परिसर में कौमारी की एक और दुर्लभ मूर्ति प्राप्त हुई।

इस खोज में जैन मंदिर मार्ग पर अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) को दर्शाती एक बौद्ध प्रतिमा भी मिली।

पांच सिरों वाले सर्प के नीचे स्थापित यह मूर्ति विल्लुपुरम में बौद्ध और जैन परंपराओं के ऐतिहासिक सह-अस्तित्व की ओर इशारा करती है।

वरिष्ठ पुरालेखविद् विजय वेणुगोपाल ने कहा कि यह खोज "इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के एक समय के जीवंत प्रसार की पुष्टि करती है।"

पुरातत्वविद् श्रीधरन ने पुष्टि की है कि सभी मूर्तियां चोल काल की हैं और संभवतः अब लुप्त हो चुके शिव मंदिर परिसर का हिस्सा थीं।

इतिहासकार सेनगुट्टुवन ने उचित संरक्षण और दस्तावेजीकरण के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया और बताया कि पास में ही एक आधा दबा हुआ उत्कीर्ण पत्थर का स्लैब भी मिला है।

उन्होंने पुरातत्व विभाग (एएसआई) और स्थानीय अधिकारियों से भविष्य के अनुसंधान और संरक्षण के लिए इस स्थल की सुरक्षा करने की अपील की।

Point of View

बल्कि यह हमारे समाज की धार्मिक विविधता को भी स्पष्ट करती है। हमें इन धरोहरों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
NationPress
28/10/2025

Frequently Asked Questions

इन कलाकृतियों की खोज कब हुई?
यह खोज 28 अक्टूबर 2023 को हुई थी जब पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान कलाकृतियां मिलीं।
इन मूर्तियों का क्या महत्व है?
ये मूर्तियां चोल काल की कलात्मक उत्कृष्टता और धार्मिक विविधता का प्रतीक हैं।
कौन-कौन सी मूर्तियां मिली हैं?
इस खोज में वैष्णवी देवी, कौमारी और एक बौद्ध आकृति की मूर्तियां शामिल हैं।
इन कलाकृतियों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
इतिहासकारों ने उचित संरक्षण और दस्तावेजीकरण के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया है।
क्या ये मूर्तियां अब लुप्त हो चुके शिव मंदिर का हिस्सा हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि ये मूर्तियां संभवतः अब लुप्त हो चुके शिव मंदिर परिसर का हिस्सा थीं।