क्या विरासत से निकले नेता खुद को 'जननायक' की उपाधि से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं?

सारांश
Key Takeaways
- कर्पूरी ठाकुर स्किल यूनिवर्सिटी का उद्घाटन एक ऐतिहासिक पहल है।
- यह यूनिवर्सिटी युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगी।
- राजनीतिक विमर्श में जननायक की उपाधि का महत्व बढ़ रहा है।
पटना, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को बिहार में 'कर्पूरी ठाकुर स्किल यूनिवर्सिटी' का वर्चुअल उद्घाटन किया। यह यूनिवर्सिटी बिहार के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने और नौकरी के नए अवसर सृजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसे बिहार के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो सामाजिक न्याय के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर के नाम पर समर्पित है।
भाजपा प्रवक्ता अजय आलोक ने इस मौके पर कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जननायक कर्पूरी ठाकुर के नाम पर स्किल यूनिवर्सिटी का उद्घाटन कर बिहार के युवाओं को एक सुनहरा भविष्य प्रदान किया है। यह यूनिवर्सिटी विभिन्न क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण देगी, जिससे युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। यह बिहार के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।"
उन्होंने इस यूनिवर्सिटी को बिहार के युवाओं के लिए एक गेम-चेंजर बताया, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगी।
अजय आलोक ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग, जो केवल अपने पारिवारिक नाम के बल पर राजनीति में हैं, अब 'जननायक' की उपाधि अपने नाम से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "क्या ये लोग जननायक का असली अर्थ समझते हैं? क्या इन्होंने कभी जनता का दर्द महसूस किया? अगर इनके नाम के साथ परिवार का ठप्पा न होता, तो इनकी अपनी पार्टी में भी कोई पहचान न होती।"
प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी और कहा कि बिहार की जनता ऐसे प्रयासों से नाराज है। उन्होंने जोर देकर कहा, "जननायक की उपाधि जनता देती है, यह कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं है जिसे कोई खुद हथिया ले। यह भारत रत्न नहीं है कि घर में खुद को दे दिया जाए।"
दूसरी ओर, कांग्रेस पर भी इस दौरान निशाना साधा गया। आलोक ने कांग्रेस नेता मनीष तिवारी के एक बयान का हवाला देते हुए कहा कि यूपीए सरकार अमेरिकी दबाव में काम करती थी।
उन्होंने कहा, "पूर्व एयर चीफ एसपी तियागी और अन्य ने माना था कि यूपीए सरकार आतंकी हमलों के बाद कार्रवाई करने में असमर्थ रही। तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी भी इसके पक्ष में नहीं थे। यह दिखाता है कि कांग्रेस की सरकार कितनी कमजोर थी।"