क्या 2025 में दुनिया के विश्वविद्यालय विवादों में रहेंगे?
सारांश
Key Takeaways
- विश्वविद्यालयों में विवाद अक्सर छात्र राजनीति से जुड़े होते हैं।
- ग्लोबल मुद्दे विश्वविद्यालयों के माहौल को प्रभावित करते हैं।
- प्रशासन और छात्रों के बीच का संतुलन चुनौतीपूर्ण होता है।
- विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन और आंदोलन सामान्य हैं।
- राजनीतिक गतिविधियाँ शिक्षण संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
नई दिल्ली, 26 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। यह वर्ष अब अपने अंतिम चरण में है। इस वर्ष दुनिया भर में अनेक घटनाएँ हुईं, जिनमें कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक थीं। इस साल कई विवादों का दौर भी देखने को मिला। विश्व भर में इस वर्ष विभिन्न प्रकार के विवाद सामने आए। इन विवादों में कई प्रमुख विश्वविद्यालयों का नाम भी शामिल रहा है। चलिए जानते हैं कि इस वर्ष कौन-कौन से विश्वविद्यालय विवादों में शामिल रहे।
अमेरिका का हावर्ड यूनिवर्सिटी विवादों में रहा। इसका कारण फिलिस्तीन में इजरायल के साथ चल रहा गाजा युद्ध था। यहाँ गाजा युद्ध के संदर्भ में छात्रों द्वारा प्रदर्शन, कैंपस में यहूदी-विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस देखने को मिली। यह मुद्दा इजरायल को युद्ध के लिए फंडिंग, सुरक्षित स्थान बनाम स्वतंत्र भाषण रहा।
अमेरिका का कोलंबिया यूनिवर्सिटी भी इस वर्ष विवादों में घिरा रहा। यहाँ भी मुद्दा फिलिस्तीन से जुड़ा था। प्रो-फिलिस्तीन छात्र आंदोलन, कैंपस में टेंट प्रदर्शन, कक्षाओं में व्यवधान, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा पुलिस बुलाना और छात्रों की गिरफ्तारी चर्चा का विषय रहे।
ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी इस साल विवादों की सूची में अपनी जगह बना ली। यहाँ औपनिवेशिक इतिहास से संबंधित पाठ्यक्रम, मूर्तियों और नामों में बदलाव की मांग को लेकर विवाद उत्पन्न हुए। इसके साथ ही 'डिकॉलोनाइज द सिलेबस' अभियान भी चलाया गया।
ब्रिटेन का प्रसिद्ध कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी भी विवादों में रहा, जिसका मुख्य कारण इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष पर छात्रों और फैकल्टी द्वारा की गई राजनीतिक टिप्पणी थी।
फ्रांस के साइंसेज पो में मध्य पूर्व के मुद्दों पर छात्रों का बड़ा प्रदर्शन हुआ। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कक्षाओं को निलंबित करने और कैंपस को लॉकडाउन करने का निर्णय लिया गया।
जर्मनी के फ्री यूनिवर्सिटी बर्लिन में इजरायल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर विवाद उत्पन्न हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि इजरायल-फिलिस्तीन विषय पर आयोजित कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा। इसके अलावा जर्मनी के कड़े एंटी-हेट और एंटी-सेमिटिज्म कानून को लेकर भी विवाद हुआ।
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी में भी इन संघर्षों को लेकर छात्रों का गुस्सा देखने को मिला। छात्रों ने विदेशी संघर्षों के खिलाफ विश्वविद्यालय में नारे लगाए और विरोध प्रदर्शन भी किया। कुछ गतिविधियों पर प्रशासनिक कार्रवाई भी हुई।
कनाडायूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो भी विवादों की सूची में शामिल रहा। यहाँ राजनीतिक गतिविधियों को लेकर प्रोफेसरों और छात्रों के बीच तीखी बहस और कैंपस में माहौल को लेकर शिकायतें विवाद का हिस्सा रहीं।
इस विवादों की सूची में भारत के दो विश्वविद्यालय भी शामिल रहे। इनमें एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दूसरा दिल्ली विश्वविद्यालय था। जेएनयू में छात्र राजनीति, विचारधारात्मक टकराव, कैंपस हिंसा और प्रशासनिक निर्णय विवाद का कारण बने।
इसके अतिरिक्त, डीयू में इतिहास और राजनीति से संबंधित पाठ्यक्रम में बदलाव, कुछ विषयों को हटाने और जोड़ने पर विवाद देखने को मिला।