क्या गर्मी और जलवायु परिवर्तन से हर साल 5.5 लाख लोगों की मौत हो रही है?
सारांश
Key Takeaways
- गर्मी से मौतों में वृद्धि हुई है जो चिंताजनक है।
- जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है।
- प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
- सरकारों को जीवाश्म ईंधन पर खर्च कम करना चाहिए।
- जलवायु संकट को स्वास्थ्य संकट के रूप में देखा जाना चाहिए।
जिनेवा, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, गर्मी से होने वाली मौतों में 1990 के बाद से 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2012 से 2021 के बीच, हर वर्ष औसतन 5,46,000 लोग गर्मी के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठे। यह आंकड़ा स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर 'द लैंसेट' द्वारा प्रकाशित किया गया है।
इस रिपोर्ट को 128 विशेषज्ञों ने तैयार किया है, जिन्होंने विभिन्न देशों और क्षेत्रों में कार्य किया है। इसमें यह बताया गया है कि किस प्रकार जलवायु निष्क्रियता के चलते हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, बाढ़, सूखा, और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे दुनिया में संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है।
यह रिपोर्ट सीओपी 30 सम्मेलन से पहले आई है, जो इस वर्ष नवंबर में ब्राजील में आयोजित होगा। रिपोर्ट में 20 मुख्य संकेतकों में से 12 अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं, जो यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन न केवल जानें ले रहा है, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली पर भी दबाव डाल रहा है और अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम समय पर कदम नहीं उठाते हैं, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के डॉ. जेरेमी फैरर ने कहा, "जलवायु संकट अब स्वास्थ्य संकट में बदल गया है। तापमान में हर छोटी वृद्धि लोगों की जान और उनकी आजीविका को प्रभावित कर रही है। स्वच्छ हवा, स्वस्थ भोजन, और मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।"
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मानव गतिविधियों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसें जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण हैं। 2024 में औसत वार्षिक तापमान पहली बार औद्योगिक युग की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया। इसका प्रभाव सीधे लोगों पर पड़ रहा है।
2024 में, एक सामान्य व्यक्ति को औसतन 16 दिन खतरनाक गर्मी का सामना करना पड़ा। बच्चों और बुजुर्गों को इससे भी अधिक, लगभग 20 दिन गर्मी झेलनी पड़ी। यह पिछले 20 वर्षों के मुकाबले चार गुना अधिक है।
दुनिया के 64 प्रतिशत हिस्सों में 1961-90 और 2015-24 के बीच भारी बारिश वाले दिनों में वृद्धि हुई है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है। 2024 में 61 प्रतिशत वैश्विक भूमि क्षेत्र में अत्यधिक सूखा पड़ा, जो 1950 के औसत से लगभग तीन गुना अधिक है। इससे खाना, पानी, स्वच्छता, और आर्थिक संसाधनों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
गर्मी और सूखे ने जंगल की आग के खतरे को भी बढ़ाया। 2024 में जंगल की आग के धुएं के कारण 154,000 लोगों की मौत हुई। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन से संक्रामक बीमारियों का फैलने का खतरा भी बढ़ रहा है। डेंगू फैलाने वाले मच्छर अधिक सक्रिय हो गए हैं, जिससे डेंगू के फैलने की संभावना बढ़ गई है।
दूसरी ओर, 2023 में सरकारों ने कुल 956 अरब डॉलर जीवाश्म ईंधन पर खर्च किए, जो जलवायु-संवेदनशील देशों की मदद के लिए किए जाने वाले खर्च से तीन गुना अधिक है।
15 देशों ने अपने पूरे स्वास्थ्य बजट से अधिक राशि जीवाश्म ईंधन पर खर्च की।