क्या कमर और लंबाई का अनुपात दिल की बीमारी का सही खतरा बताएगा?
                                सारांश
Key Takeaways
- कमर और ऊंचाई का अनुपात दिल की बीमारी के खतरे का एक सटीक संकेतक हो सकता है।
 - बीएमआई के साथ-साथ वेस्ट-टू-हाइट अनुपात को ध्यान में रखना जरूरी है।
 - जो लोग सामान्य बीएमआई के बावजूद जोखिम में हैं, उनके लिए यह माप महत्वपूर्ण है।
 - दिल की बीमारी की पहचान में समय पर कार्रवाई करना आवश्यक है।
 - सेंट्रल ओबेसिटी दिल की बीमारी से सीधा जुड़ा होता है।
 
नई दिल्ली, 4 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल की बीमारी आज के समय में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गई है। कई लोग इसे केवल मोटापे, हाई कोलेस्ट्रॉल या हाई ब्लड प्रेशर से संबंधित मानते हैं, लेकिन एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ये नजरिए हमेशा सही नहीं होते।
कई लोग जिनका वजन सामान्य या थोड़ा अधिक है, उन्हें इस खतरे का आभास नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों में भी दिल की बीमारी का जोखिम हो सकता है, भले ही उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सामान्य सीमा के भीतर हो।
द लैंसेट रीजनल हेल्थ-अमेरिकाज में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह पाया कि कमर का माप और ऊंचाई का अनुपात (वेस्ट-टू-हाइट) दिल की बीमारी के संभावित खतरे का सही आकलन करने का एक विश्वसनीय तरीका हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस खोज के बाद डॉक्टर और आम लोग दिल की बीमारी के जोखिम को समझने के नए तरीके अपनाने में सक्षम होंगे। यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है जो बीएमआई के अनुसार मोटापे की श्रेणी में नहीं आते, फिर भी जोखिम में हो सकते हैं।
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखक थियागो बोस्को मेंडेस ने कहा, "प्रारंभिक विश्लेषण में बीएमआई, कमर के माप और ऊंचाई का अनुपात सभी दिल की बीमारी के संभावित जोखिम से जुड़े हुए दिखे। लेकिन जब उम्र, लिंग, धूम्रपान, व्यायाम, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसे अन्य कारकों को ध्यान में रखा गया, तो केवल वेस्ट-टू-हाइट का अनुपात ही भविष्यवाणी करने वाला महत्वपूर्ण उपाय बनकर उभरा।"
इस अध्ययन में 2,721 वयस्कों का डेटा शामिल किया गया, जिनके पास कोई हृदय रोग नहीं था। इन व्यक्तियों का पांच साल से अधिक समय तक ट्रैक किया गया ताकि यह देखा जा सके कि कौन सी माप दिल की बीमारी के खतरे की सही पहचान करती है। परिणामों से पता चला कि यह उपाय विशेष रूप से उन लोगों में प्रभावी है जिनका बीएमआई 30 से कम है। ऐसे लोग अक्सर खुद को मोटापे या दिल की बीमारी के जोखिम में नहीं मानते, लेकिन वेस्ट-टू-हाइट का अनुपात उन्हें सही चेतावनी दे सकता है।
बीएमआई केवल वजन और ऊंचाई के आधार पर गणना करता है और यह नहीं बताता कि शरीर में वसा कहां जमा है। पेट के चारों ओर जमा वसा, जिसे सेंट्रल ओबेसिटी कहा जाता है, दिल की बीमारी से सीधे जुड़ा होता है। वेस्ट-टू-हाइट का अनुपात इस सेंट्रल वसा को दर्शाता है और इसलिए यह दिल की बीमारी का एक बेहतर संकेतक माना जा सकता है।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि जिन व्यक्तियों का बीएमआई 30 से कम था, लेकिन उनका वेस्ट-टू-हाइट का अनुपात 0.5 से अधिक था, उन्हें भविष्य में कोरोनरी आर्टरी कैल्सिफिकेशन यानी दिल की धमनियों में कैल्शियम जमा होने का खतरा अधिक था। यह दिल की बीमारी का एक प्रमुख संकेतक है।
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर और वरिष्ठ लेखक मार्सियो बिट्टनकोर्ट ने कहा, "वेस्ट-टू-हाइट का अनुपात एक सरल और प्रभावी स्क्रीनिंग उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका मतलब है कि जिन मरीजों के अन्य पैरामीटर जैसे वजन, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल सामान्य हैं, उनके दिल की बीमारी का खतरा भी पहचाना जा सकता है। इस तरीके से समय पर पहचान और इलाज संभव है, जिससे गंभीर रोगों और दिल के दौरे का खतरा कम किया जा सकता है।"