क्या मच्छर की लार से चिकनगुनिया का इलाज संभव है? सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने किया खुलासा

सारांश
Key Takeaways
- मच्छर की लार में सियालोकिनिन नामक प्रोटीन का प्रभाव है।
- इम्यून प्रणाली पर इसका सीधा असर पड़ता है।
- चिकनगुनिया के इलाज के नए तरीके विकसित किए जा सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन मच्छरों के फैलाव को बढ़ा रहा है।
- शोध से नई चिकित्सा संभावनाएं खुल सकती हैं।
नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। चिकनगुनिया जैसी वायरल बीमारियों के इलाज और रोकथाम में एक नई आशा जगाने वाली रिसर्च सामने आई है। सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण खोज की है, जिसके अनुसार मच्छर की लार में मौजूद एक विशेष प्रोटीन हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम पर सीधा प्रभाव डालता है।
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि एडीज मच्छर की लार में पाया जाने वाला सियालोकिनिन नाम का एक बायोएक्टिव पेप्टाइड (प्रोटीन जैसा तत्व) हमारे शरीर की कुछ खास इम्यून कोशिकाओं से जुड़ता है। यह कोशिकाएं हमारे शरीर में संक्रमण के खिलाफ शुरुआती लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
सिंगापुर स्थित 'ए स्टार संक्रामक रोग प्रयोगशाला (ए स्टार आईडीएल)' की टीम ने कहा है कि जब मच्छर काटता है, तो उसकी लार के जरिए यह सियालोकिनिन हमारे शरीर में प्रवेश करता है और न्यूरोकिनिन रिसेप्टर्स से जुड़कर मोनोसाइट नामक इम्यून कोशिकाओं को सक्रिय होने से रोक देता है। इससे शरीर में इंफ्लेमेशन की प्रक्रिया थोड़ी देर के लिए धीमी हो जाती है।
हालांकि, प्रारंभिक इंफ्लेमेशन को रोकना सामान्यतः शरीर के लिए फायदेमंद लग सकता है, लेकिन वायरस के संक्रमण के मामले में यह नुकसानदायक हो सकता है। चिकनगुनिया वायरस का संक्रमण जब शरीर के अंदर पहुंचता है, तो उसे रोकने के लिए शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया बहुत आवश्यक होती है। लेकिन जब यह प्रतिक्रिया धीमी हो जाती है, जैसा कि सियालोकिनिन के कारण होता है, तो वायरस को शरीर में फैलने का मौका मिल जाता है, जिससे आगे चलकर लक्षण और गंभीर हो सकते हैं।
इस रिसर्च में यह भी देखा गया कि जिन मरीजों को चिकनगुनिया के गंभीर लक्षण हुए, उनके खून में सियालोकिनिन के खिलाफ अधिक मात्रा में एंटीबॉडी (प्रतिरोधक प्रोटीन) पाए गए।
'ए स्टार आईडीएल' के वरिष्ठ वैज्ञानिक और इस रिसर्च के मुख्य लेखक डॉ. सियू-वाइ फोंग ने कहा कि यह अध्ययन इस बात का ठोस प्रमाण है कि मच्छर की लार वायरस के अलावा हमारे शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया को भी प्रभावित करती है। उनका मानना है कि भविष्य में सियालोकिनिन या इसके रिसेप्टर्स को लक्षित करके इलाज विकसित किया जाए तो चिकनगुनिया और अन्य मच्छर जनित बीमारियों में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
चिकनगुनिया एक ऐसी बीमारी है जो एडीज मच्छर के काटने से फैलती है और इसके लक्षणों में तेज बुखार, जोड़ों में सूजन और लंबे समय तक चलने वाला दर्द शामिल है। इस बीमारी से ग्रस्त कई मरीज महीनों तक जोड़ों के दर्द से जूझते हैं। ऐसे में यदि मच्छर की लार में मौजूद तत्वों को समझकर उनके प्रभाव को कम किया जाए, तो बीमारी की गंभीरता को कम किया जा सकता है।
यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण मच्छरों का फैलाव बढ़ रहा है और ऐसे वायरस नए क्षेत्रों में पहुंच सकते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि मच्छर की लार में छिपे तत्वों को पहचानकर उन्हें ब्लॉक करना भविष्य में बीमारी से बचाव का नया रास्ता खोल सकता है।