क्या लांस क्लूजनर: गन्ने के खेत में काम करने वाले ने क्रिकेट की दुनिया में नाम कमाया?

सारांश
Key Takeaways
- कड़ी मेहनत और प्रतिभा से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
- क्लूजनर ने गन्ने के खेत से उठकर क्रिकेट की दुनिया में नाम कमाया।
- उनका प्रदर्शन 1999 वनडे विश्व कप में यादगार रहा।
- विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर बनना उनकी महानता का प्रमाण है।
- कोचिंग में सक्रिय रहकर वे नई पीढ़ी को प्रेरित कर रहे हैं।
नई दिल्ली, 3 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। मनुष्य की किस्मत पलटने में देर नहीं लगती, यदि उसे अपनी मेहनत और पुरुषार्थ पर विश्वासपरिश्रम व्यक्ति को फर्श से अर्श पर पहुंचा सकता है। कुछ ऐसी ही कहानी है दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट के एक अद्वितीय ऑलराउंडर की, जो कभी गन्ने के खेतों में काम किया करता था।
4 सितंबर 1971 को दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रोविंस में एक बच्चे का जन्म हुआ। उसका परिवार गन्ने के खेत में श्रमिक था। बड़े होते ही, गन्ने के खेत में काम करना उस बच्चे की नियति बन गई और उसने खुशी-खुशी इस कार्य को अपनाया। उसने जुलु भाषा भी सीख ली, जो अफ्रीका की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या बोलती है।
क्रिकेट के प्रति लगाव स्कूल के अंतिम वर्ष में जागा, जहां उसकी टीम ने फाइनल में प्रवेश किया। यदि क्रिकेट में करियर न बनाना होता, तो उसने सेना में शामिल होकर तीन साल तक सेवा की। सेना में रहते हुए भी वह क्रिकेट खेलता रहा। इस दौरान उसकी गेंदबाजी क्षमता ने सभी को प्रभावित किया। वेस्टइंडीज के महान गेंदबाज मैल्कम मार्शल, जो उस समय नटाल क्रिकेट टीम के प्रबंधक थे, ने पहली बार उसे गेंदबाजी करते हुए देखा और उसकी अद्वितीय क्षमता को पहचाना।
मार्शल ने इस युवा क्रिकेटर पर लगातार मेहनत की। 1993-1994 में वह नटाल इलेवन में चुने गए और यहीं से शुरू हुई एक महानतम ऑलराउंडर की यात्रा। मार्शल की निगरानी में इस युवा क्रिकेटर ने अपनी गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों को निखारा।
19 जनवरी 1996 को इंग्लैंड के खिलाफ वनडे में 25 वर्ष की आयु में एक क्रिकेटर ने डेब्यू किया। उसका नाम था लांस क्लूजनर।
क्लूजनर बाएं हाथ के विस्फोटक बल्लेबाज और दाएं हाथ के मध्यम गति के तेज गेंदबाज थे। अपनी क्षमता के दम पर उन्होंने वनडे और टेस्ट दोनों ही फॉर्मेट में अपनी जगह बनाई।
क्लूजनर को दक्षिण अफ्रीका का गोल्डन आर्म माना जाता था। वह एक ऐसे गेंदबाज के रूप में पहचाने गए जो जमी जमाई जोड़ियों को तोड़ने की क्षमता रखते थे। बल्लेबाजी करते समय, वह पांचवें, छठे या सातवें नंबर पर आकर टीम को जीत दिलाते थे। वह तब फिनिशर का काम करते थे, जब यह शब्द चर्चा में भी नहीं था।
क्लूजनर का उत्कर्ष 1999 वनडे विश्व कप में देखने को मिला। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में अकेले वह टीम के लिए खड़े थे। 16 गेंदों पर 31 रन बनाकर खेल रहे थे। स्कोर बराबर था। यदि डोनाल्ड रन आउट नहीं होते, तो शायद दक्षिण अफ्रीका फाइनल में पहुँच जाती। लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। लीग मैच में दक्षिण अफ्रीका ऑस्ट्रेलिया से हार गई थी। हालांकि, क्लूजनर ने अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया। टूर्नामेंट में 17 विकेट लेने और 281 रन बनाने वाले क्लूजनर प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट रहे थे। उन्होंने चार बार प्लेयर ऑफ द मैच का खिताब भी जीता। 2020 में उन्हें विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर का पुरस्कार मिला।
171 वनडे मैचों की 137 पारियों में 50 बार नाबाद रहते हुए 41.10 की औसत से 2 शतक और 19 अर्धशतक लगाते हुए, क्लूजनर ने 3,576 रन बनाए। साथ ही 192 विकेट भी लिए। इस दौरान 6 बार उन्होंने एक मैच में 5 या उससे अधिक विकेट लिए। लगभग हर 30वीं गेंद पर विकेट लेने वाले क्लूजनर की इकॉनमी 4.70 थी। बल्लेबाजी और गेंदबाजी का औसत और स्ट्राइक रेट क्लूजनर की असाधारण क्षमता को प्रदर्शित करता है।
श्रेष्ठ ऑलराउंडर्स की सूची बनाते समय अक्सर विशेषज्ञ क्लूजनर का नाम भूल जाते हैं, लेकिन वनडे फॉर्मेट में इस खिलाड़ी के आंकड़े उनकी श्रेष्ठता को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं।
49 टेस्ट में 4 शतक की मदद से 1,906 रन बनाने के अलावा 80 विकेट भी उन्होंने लिए। भारत के खिलाफ डेब्यू टेस्ट की दूसरी पारी में क्लूजनर ने 64 रन देकर 8 विकेट लिए थे। दक्षिण अफ्रीका के लिए डेब्यू करते हुए टेस्ट में किसी गेंदबाज का यह श्रेष्ठ प्रदर्शन है।
संन्यास के बाद, क्लूजनर कोचिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं और वर्तमान में आईपीएल में लखनऊ सुपर जाइंट्स से जुड़े हुए हैं।