क्या पुलेला गोपीचंद ने 'अमीर नहीं तो बच्चों को खिलाड़ी न बनाएं' कहकर सही कहा?
सारांश
Key Takeaways
- पुलेला गोपीचंद का बर्थडे और उनके विचार
- खेल की महंगाई और उसके प्रभाव
- मेहनत से सफलता की संभावना
- गोपीचंद की बैडमिंटन एकेडमी का योगदान
- खेल में असफलता और उसके बाद की चुनौतियाँ
नई दिल्ली, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में क्रिकेट के साथ ही अन्य खेलों में बैडमिंटन एक प्रमुख स्थान रखता है। इसमें पुलेला गोपीचंद का महत्वपूर्ण योगदान है। पहले एक खिलाड़ी और अब कोच के रूप में, गोपीचंद ने इस खेल को न केवल लोकप्रिय बनाया है बल्कि इसे करियर के लिए भी अवसर प्रदान किया है। वर्तमान में, गोपीचंद राष्ट्रीय बैडमिंटन टीम के कोच हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि केवल अमीर लोग ही अपने बच्चों को खेलों में भेजें। आइए उनके 52वें जन्मदिन पर समझते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा।
गोपीचंद ने कहा था कि अमीर परिवारों को अपने बच्चों को खेल के क्षेत्र में भेजना चाहिए। उन्होंने कई खिलाड़ियों का उदाहरण दिया है जिन्होंने करियर खत्म होने के बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया और सरकार से मदद मांगी।
एक सफल खिलाड़ी और कोच के नाते, गोपीचंद को खेल के क्षेत्र में संघर्ष का अनुभव है। खेल निश्चित रूप से सफलता के साथ धन और प्रसिद्धि लाता है, लेकिन असफलता की स्थिति में मात्र गुमनामी ही मिलती है। खेल की ट्रेनिंग अब महंगी हो गई है, जैसे क्रिकेट या बैडमिंटन अकादमी। साधारण परिवार के बच्चे अकादमी में नहीं जा सकते। अकादमी में अच्छे कोच होते हैं, इसलिए बिना कोचिंग के किसी खिलाड़ी की प्रतिभा नहीं निखर सकती। लंबे संघर्ष के बाद यदि किसी खिलाड़ी को असफलता मिलती है, तो उसके पास अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने का अवसर कम रह जाता है।
गोपीचंद का बयान आज के संदर्भ में पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी सच है कि यदि मेहनत और लगन हो, तो कोई भी लक्ष्य प्राप्त करना संभव है। वर्तमान में कई ऐसे उदाहरण हैं जो इस बात को प्रमाणित करते हैं।
पुलेला गोपीचंद का जन्म 16 नवंबर 1973 को नागंदला, आंध्र प्रदेश में हुआ था। बचपन में, उन्होंने क्रिकेट में रुचि दिखाई, लेकिन अपने बड़े भाई की सलाह पर बैडमिंटन खेलना शुरू किया, जो बाद में उनकी पहचान बन गया।
1996 में, गोपीचंद ने राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियनशिप में पहला खिताब जीता और लगातार 5 बार यह खिताब अपने नाम किया। 1998 में, उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में टीम इवेंट में सिल्वर और सिंगल्स में कांस्य पदक जीता, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। 2001 में उन्होंने ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती और प्रकाश पादुकोण के बाद यह खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय बने। 2000 में एशियन चैंपियनशिप में भी उन्होंने कांस्य जीता।
खेल से संन्यास लेने के बाद, 2008 में गोपीचंद ने हैदराबाद में 'गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी' की स्थापना की। इस संस्थान का उद्देश्य ऐसे खिलाड़ियों को तैयार करना था जो ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीत सकें। गोपीचंद इस उद्देश्य में सफल रहे हैं। उनकी एकेडमी से निकली साइना नेहवाल और पी. वी. सिंधु ने ओलंपिक में मेडल जीते। साइना ने लंदन ओलंपिक में ब्रांज जीता, जबकि सिंधु ने रियो ओलंपिक में सिल्वर और टोक्यो ओलंपिक में ब्रांज जीता।
प्रणीत, पारुपल्ली कश्यप, श्रीकांत किदांबी, अरुंधति पेंटावने, गुरुसाई दत्त, और अरुण विष्णु जैसे खिलाड़ी भी गोपीचंद एकेडमी से निकले हैं।
गोपीचंद के योगदान को भारत सरकार ने भी सम्मानित किया है। उन्हें अर्जुन पुरस्कार (1999), मेजर ध्यानचंद खेल रत्न (2001), पद्मश्री (2005), द्रोणाचार्य अवॉर्ड (2009), और पद्मभूषण से नवाजा गया है।