क्या वीआरवी सिंह भारतीय क्रिकेट में अपनी रफ्तार से जोश भरने वाले नैसर्गिक तेज गेंदबाज हैं?

सारांश
Key Takeaways
- वीआरवी सिंह ने भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजी की नई पहचान बनाई।
- चोटों ने उनके करियर को प्रभावित किया।
- उन्होंने 90 मील प्रति घंटे की गति से गेंदबाजी की।
- उनका जन्म 17 सितंबर को हुआ था।
- उन्होंने 5 टेस्ट और 2 वनडे मैच खेले हैं।
नई दिल्ली, 16 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय क्रिकेट में वीआरवी सिंह जैसे तेज गेंदबाजों की रफ्तार हमेशा से एक खास आकर्षण रही है। पहले विराट कोहली और रवि शास्त्री के युग से पहले, भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजों की गति पर चर्चा होती थी। आज भी, 150 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से गेंद फेंकने वाले गेंदबाज दर्शकों का ध्यान खींच लेते हैं। भारतीय संदर्भ में, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि गति हमारी पहचान नहीं रही है। ऐसे में, जिन्होंने इस मिथक को तोड़ा, वे चर्चित हो गए। वीआरवी सिंह जैसे कद-काठी वाले एक पेसर ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वीआरवी सिंह का जन्म 17 सितंबर को हुआ था। वह दाएं हाथ के तेज गेंदबाज थे और जब उनका करियर शुरू हुआ, तब भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजों की गति पर आलोचनाएँ होती थीं। श्रीनाथ के बाद, टीम को एक नैसर्गिक पेसर की सख्त जरूरत थी।
पंजाब के लंबे और मजबूत बॉलर वीआरवी का आगमन भारतीय क्रिकेट में ठंडी हवा के झोंके की तरह था। उन्होंने अपनी गति से ही पहचान बनाई, गेंदबाजी करते समय वह 90 मील प्रति घंटा और कभी-कभी उससे भी तेज गेंद फेंकते थे। इस स्पीड का भारतीय घरेलू क्रिकेट में कोई उदाहरण नहीं था। अपने पहले डोमेस्टिक सीज़न में, वीआरवी ने केवल सात रणजी मैच खेलकर 20.67 की औसत से 34 विकेट लिए।
2005 में, उन्हें चैलेंजर्स ट्रॉफी में खेलने का अवसर मिला, जो एक डोमेस्टिक प्रीमियर टूर्नामेंट था। इस दौरान उनकी गति ने दर्शकों का ध्यान खींचा और अखबारों में रफ्तार का नया सौदागर के रूप में उभरे। भारतीय फैंस ने शोएब अख्तर और ब्रेट ली जैसे खिलाड़ियों की तरह अपने पास एक देसी हीरो की ख्वाहिश रखी।
हालांकि, तेज गेंदबाजी का केवल रफ्तार एक महत्वपूर्ण पहलू है। लाइन-लेंथ, लय, नियंत्रण और फिटनेस जैसे तत्व भी एक तेज गेंदबाज के लिए आवश्यक हैं। वीआरवी के पास गति तो थी, लेकिन समय के साथ उनकी तकनीक में सुधार की आवश्यकता थी। उनकी फिटनेस ने उनके करियर को सीमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जब भारतीय टीम में उनके लिए दरवाजे खुले, तब वह चोटिल हो गए और रिहैब से गुजरना पड़ा। फिर भी, चयनकर्ताओं की नजर में उनकी जगह बनी रही और उन्हें इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज के लिए चुना गया।
वीआरवी निश्चित रूप से भविष्य के नैसर्गिक बॉलर थे, लेकिन उनका करियर उस तरह से आगे नहीं बढ़ा, जैसा कि उम्मीद की गई थी। कई बार उन्हें नियंत्रण पाने में कठिनाई होती थी, और कई बार रफ्तार को नियंत्रित करने की कोशिश की।
उनका चयन भारतीय टीम के कैरेबियाई दौरे पर हुआ, जहाँ उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट मैच में पदार्पण किया। तब इयान बिशप ने उन्हें देखकर प्रसन्नता व्यक्त की।
हालांकि वीआरवी का करियर सीमित रहा, उन्होंने पांच टेस्ट और दो वनडे मैच खेले, जिसमें क्रमशः 8 और 0 विकेट लिए। उनका फर्स्ट क्लास करियर भी केवल 37 मैचों तक सीमित था। फिर भी, उनका आगमन भारतीय क्रिकेट में एक ऐसे पेसर के रूप में हुआ, जिसने भविष्य के पेस बिग्रेड के लिए रास्ता तैयार किया।
भारतीय क्रिकेट में बुनियादी सुविधाओं, वर्ल्ड क्लास कोचिंग और वर्कलोड प्रबंधन पर ध्यान दिया गया है। इसीलिए, वीआरवी भारत के अंतिम विशुद्ध पेसर नहीं बन सके, और टीम इंडिया ने यह साबित किया कि एक एशियाई टीम भी उच्च स्तर के तेज गेंदबाज पैदा कर सकती है।