क्या बारामती कोर्ट से डिप्टी सीएम अजित पवार को मिली राहत? 2014 चुनावी धमकी मामले में प्रक्रिया रद्द
सारांश
Key Takeaways
- बारामती की अदालत ने अजित पवार को राहत दी।
- 2014 चुनावी धमकी मामले में प्रक्रियाएं रद्द की गईं।
- अदालत ने मजिस्ट्रेट के आदेश को सही नहीं माना।
- यह मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है।
- अजित पवार ने आरोपों को हमेशा खारिज किया है।
बारामती (पुणे), 13 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बारामती की अतिरिक्त सत्र अदालत ने डिप्टी सीएम अजित पवार को एक पुरानी राहत प्रदान की है। यह राहत 2014 के लोकसभा चुनाव से संबंधित एक मामले में दी गई है, जिसमें उन पर मतदाताओं को धमकाने का आरोप था। अदालत ने निचली अदालत यानी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अजित पवार के खिलाफ जारी की गई आपराधिक प्रक्रिया के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट का यह आदेश कानून की दृष्टि से उचित नहीं है और इसमें न्यायिक विवेक का अभाव है।
यह मामला 2014 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। उस समय बारामती में एक चुनावी सभा हुई थी। सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी सुरेश खोपड़े, जो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार थे, ने शिकायत की थी। उनका आरोप था कि 16 अप्रैल 2014 को हुई सभा में अजित पवार ने मतदाताओं को धमकी दी थी। उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि अगर लोग उनकी चचेरी बहन सुप्रिया सुले को वोट नहीं देंगे, तो कुछ गांवों का पानी बंद कर दिया जाएगा। इसी आधार पर मजिस्ट्रेट अदालत ने अजित पवार के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने का आदेश दिया था।
अजित पवार की तरफ से वरिष्ठ वकील प्रशांत पाटिल ने सत्र अदालत में चुनौती दी। उन्होंने दलील दी कि मजिस्ट्रेट का आदेश सही नहीं है, क्योंकि इसमें ठोस कारण नहीं बताए गए। बिना पूरी जांच और न्यायिक विवेक के किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई शुरू करना गलत है। पाटिल ने बॉम्बे हाईकोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जहां ऐसे आदेशों की आलोचना की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट ने पहले वीडियो और ऑडियो सबूतों को अस्पष्ट मानकर जांच करवाई थी, लेकिन जांच में कोई नया ठोस प्रमाण नहीं मिला। फिर भी उसी सामग्री के आधार पर प्रक्रिया जारी कर दी गई, जो कानून के खिलाफ है।
सत्र अदालत ने प्रशांत पाटिल की दलीलों को सही मानते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि आदेश में यह स्पष्ट नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तत्व कैसे पूरे होते हैं। हालांकि, अदालत ने मामला वापस मजिस्ट्रेट अदालत को भेज दिया है ताकि उपलब्ध सामग्री पर कानून के अनुसार नए सिरे से फैसला लिया जाए। इस फैसले से अजित पवार के खिलाफ चल रही आपराधिक प्रक्रिया पर रोक लग गई है।
यह मामला काफी पुराना है और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील रहा है। अजित पवार ने हमेशा इन आरोपों को खारिज किया है। इस फैसले से उन्हें राहत तो मिली है, लेकिन मामला पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। राजनीतिक गलियारों में इस पर चर्चा हो रही है कि आगे क्या होगा।