क्या भारत एआई क्षेत्र में अमेरिका का अहम साझेदार बनेगा, चीन की चुनौती के बीच?
सारांश
Key Takeaways
- भारत और अमेरिका के बीच एआई में सहयोग बढ़ रहा है।
- चीन की एआई नीति वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव डाल सकती है।
- फरवरी 2026 में भारत में एक महत्वपूर्ण एआई सम्मेलन होगा।
- लोकतांत्रिक देशों का तालमेल आवश्यक है।
- चीन एआई में बड़ी मात्रा में निवेश कर रहा है।
वाशिंगटन, 5 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। इस हफ्ते भारत की भूमिका तब विशेष रूप से उभरी जब अमेरिकी सांसदों और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि एआई के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है। चीन तेजी से अपनी सेना और उद्योगों में एआई का उपयोग कर रहा है, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी देश उन्नत चिप तकनीक पर अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए नियंत्रण कड़े कर रहे हैं।
मंगलवार (2 दिसंबर) को अमेरिकी सीनेट की एक बैठक में विशेषज्ञों ने कहा कि अगले वर्ष भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के बीच गहरे तालमेल की आवश्यकता होगी, ताकि एआई के विश्व स्तर पर नियम निर्धारित किए जा सकें, चिप सप्लाई चेन को सुरक्षित किया जा सके और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके।
ईस्ट एशिया, पैसिफिक और इंटरनेशनल साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी पर सीनेट की फॉरेन रिलेशंस सबकमेटी ने यह बैठक इस उद्देश्य से आयोजित की थी कि चीन की एआई गति का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका आकलन किया जा सके। चर्चा में भारत एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभरा, जो भविष्य के एआई ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
व्हाइट हाउस के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी और अब एंथ्रोपिक से जुड़े तरुण छाबड़ा ने कहा कि भरोसेमंद एआई ढांचा बनाने के लिए भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के साथ घनिष्ठ सहयोग अत्यंत आवश्यक होगा। उन्होंने बताया कि जल्द ही भारत में एक बड़ा एआई सम्मेलन आयोजित होने वाला है, जो ऐसे ढांचे के निर्माण का एक बड़ा अवसर होगा। यह सम्मेलन फरवरी 2026 में प्रस्तावित है।
छाबड़ा ने कहा कि एआई में नेतृत्व आने वाले वर्षों में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को गहराई से प्रभावित करेगा। उन्होंने अगले दो-तीन वर्षों को अत्यंत निर्णायक बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि चीन की सरकारी कंपनियों को अमेरिकी हार्डवेयर खरीदने से रोकने के लिए नियंत्रण और कड़े किए जाने चाहिए।
सीनेटर पीट रिक्ट्स और क्रिस कून्स ने इस एआई दौड़ को शीत युद्ध के समय की ‘स्पुतनिक प्रतियोगिता’ से जोड़ा। रिक्ट्स ने कहा कि इस बार मुकाबला चीन से है और दांव पर बहुत बड़ी चीजें हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एआई सामान्य जीवन और सैन्य दोनों को बदल देगा, और चीन सिविल और सैन्य एआई को एक साथ जोड़कर अगली तकनीकी क्रांति पर काबिज होना चाहता है।
कून्स ने कहा कि एआई में अमेरिका और उसके सहयोगियों की लीडरशिप यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि इसे विश्व स्तर पर अपनाया जाए, यह “हमारे चिप्स, हमारे क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर और हमारे मॉडल्स” पर निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि चीन एआई अनुसंधान और इसके उपयोग पर बड़ी मात्रा में निवेश कर रहा है और 2030 तक दुनिया की एआई महाशक्ति बनने का लक्ष्य रखता है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि चीन की सेना एआई को तेजी से अपने हर स्तर में जोड़ रही है। एईआई के क्रिस मिलर ने कहा कि रूस और यूक्रेन भी खुफिया जानकारी के फ़िल्टर के लिए एआई का उपयोग कर रहे हैं और यह तकनीक भविष्य में रक्षा योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगी।
भारत के लिए इस चर्चा में कई नई संभावनाएं भी उभरकर आई हैं। भारत और अमेरिका के बीच उभरती हुई तकनीकों पर सहयोग बढ़ रहा है। फरवरी 2026 में भारत में होने वाला एआई सम्मेलन इस बात का संकेत है कि दुनिया के एआई नियम, सुरक्षा मानक और सप्लाई चेन से जुड़े ढांचे के निर्माण में भारत की भूमिका अब और महत्वपूर्ण होती जा रही है।