क्या भाजपा छपरा सीट पर हैट्रिक लगाएगी या फिर से पलटेगा पासा?

सारांश
Key Takeaways
- छपरा विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास महत्वपूर्ण है।
- भाजपा की लगातार जीत की संभावना।
- मतदाता समूहों की विविधता।
- छपरा का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व।
- राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का संकेतक।
पटना, 6 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से एक छपरा विधानसभा सीट का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। चुनावों में छपरा की जनता ने विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं को अवसर प्रदान किया है। पिछले दो चुनावों में यह सीट भाजपा के पास रही है, किंतु पूर्व में कांग्रेस का भी इस सीट पर दबदबा रहा है। इस बार भाजपा जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश करेगी।
1957 में गठन के बाद छपरा विधानसभा सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं। 1957 में हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस के राम प्रभुनाथ सिंह ने जीत हासिल की थी।
कांग्रेस ने यहां कुल चार बार जीत दर्ज की, आखिरी बार 1972 में। छपरा की जनता ने 2005 के चुनाव में जदयू के राम परवश राय को विधानसभा में भेजा।
2010 में यह सीट भाजपा के पास आई, लेकिन 2014 के उपचुनाव में राजद के रणधीर कुमार सिंह ने इस सीट को जीत लिया। 2015 के आम चुनाव में भाजपा ने वापसी की और 2020 में भाजपा के सीएन गुप्ता ने यहां से लगातार दूसरी बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया।
छपरा विधानसभा सीट पर वैश्य, यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण, राजपूत, कुशवाहा, पासवान और EBC वर्ग के मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करती है।
छपरा विधानसभा सीट सारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। छपरा न केवल एक प्रमुख शहरी केंद्र है, बल्कि यह सारण प्रमंडल का मुख्यालय भी है। शहर की भौगोलिक स्थिति इसे और विशेष बनाती है।
यह घाघरा नदी के उत्तरी तट पर बसा हुआ है और गोरखपुर-गुवाहाटी रेलमार्ग पर एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है। यहां से गोपालगंज और बलिया की ओर रेल लाइनें जाती हैं, जिससे यह व्यापार और आवागमन का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है।
छपरा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र कभी कोसल साम्राज्य का हिस्सा रहा है। 9वीं शताब्दी के महेंद्र पाल देव के शासनकाल से इसका पहला लिखित उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि यहां के दाहियावां मुहल्ले में दधीचि ऋषि का आश्रम था। इसके पास ही रिविलगंज में गौतम ऋषि का आश्रम स्थित है, जहां कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है।
छपरा से जुड़ी एक अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक कथा अंबिका भवानी मंदिर से संबंधित है। कहा जाता है कि यहीं राजा दक्ष का यज्ञकुंड था, जिसमें देवी सती ने भगवान शिव के अपमान के बाद आत्मदाह किया था।
इसके अतिरिक्त, रामपुर कल्लन गांव, जो छपरा से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर में स्थित है, स्वतंत्रता संग्राम में अपने सक्रिय भूमिका के लिए जाना जाता है। यहां के सरदार मंगल सिंह स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रसिद्ध थे।
16वीं शताब्दी में अकबर के शासनकाल के दौरान आइन-ए-अकबरी में भी छपरा का उल्लेख मिलता है। ब्रिटिश काल में यह एक प्रमुख नदी बाजार के रूप में विकसित हुआ, जहां डच, फ्रांसीसी, पुर्तगालियों और अंग्रेजों ने शोरा (साल्टपीटर) के अपने शोधन केंद्र स्थापित किए।