बिहार चुनाव: जात-पात की राजनीति के केंद्र में सियासी 'हॉट सीट' क्या होगा दिलचस्प मोड़?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- बिहार चुनाव 14 नवंबर को हो रहे हैं।
- जात-पात की राजनीति का प्रभाव चुनाव पर पड़ेगा।
- कई हॉट सीट्स पर सबकी नजर है।
- राजनीतिक समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
- चुनाव परिणाम के बाद राजनीतिक दिशा में बदलाव संभव है।
पटना, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। 14 नवंबर को होने वाले चुनाव का इंतजार सिर्फ बिहार की जनता ही नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक हस्तियों का भी ध्यान इस पर केंद्रित है। बिहार की राजनीति अब केवल राज्य की नहीं, बल्कि केंद्र की सियासत का भी मुख्य केंद्र बन गई है। ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि बिहार चुनाव का परिणाम क्या होगा। इसके लिए, बिहार की कुछ हॉट सीट्स, वहां के राजनीतिक और जातीय समीकरण, केंद्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति, और 'वोट पैटर्न' पर ध्यान देना जरूरी है।
बिहार में पहला विधानसभा चुनाव 1951 में हुआ और तब से लेकर अब तक 17 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। यह प्रदेश का 18वां चुनाव है। इन चुनावों के दौरान, बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में कई परिवर्तन देखने को मिले और विभिन्न दलों ने अपनी पहचान बनाई। 1951 से 1962 तक कांग्रेस का शासन रहा। लेकिन 1967 में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, जिससे बिहार में गठबंधन की राजनीति की शुरुआत हुई। यहां कई नेताओं जैसे महामाया प्रसाद सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर और भोला पासवान शास्त्री के नेतृत्व में अल्पकालिक सरकारें बनीं और राजनीतिक अस्थिरता का दौर प्रारंभ हुआ।
हालांकि, 1977 में जनता पार्टी ने चुनाव में 214 सीटों पर जीत हासिल की और कांग्रेस को पराजित किया। कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में फिर से सत्ता में वापसी हुई, जो ज्यादा समय तक नहीं चली। फिर रामसुंदर दास ने सत्ता की कमान संभाली।
कांग्रेस ने 1980 में सत्ता में वापसी की और जगन्नाथ मिश्र ने मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया। 1985 में भी कांग्रेस ने अपनी स्थिति मजबूत की। इसके बाद, लालू यादव का युग आया। 1990 में जनता दल की सरकार बनी और लालू मुख्यमंत्री बने। 1995 में भी उनकी सरकार बनी। इस समय तक समता पार्टी और भाजपा उभरते हुए दल बन चुके थे। 2000 में राबड़ी देवी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई।
बिहार में 2005 में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। फरवरी 2005 में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, और राष्ट्रपति शासन लगाया गया। अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हुए और जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को बहुमत प्राप्त हुआ, जिसके बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने।
अब हम उन कुछ सीटों पर ध्यान देंगे, जो हमेशा चर्चा में रहती हैं। बिहार में सोनपुर विधानसभा सीट को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सारण जिले की इस सीट से कई प्रमुख नेता चुने गए हैं, और यहां से दो मुख्यमंत्री बने हैं। रामसुंदर दास और लालू प्रसाद यादव ने इसी सीट से जीत हासिल की।
इसके साथ ही, कैमूर जिले में चैनपुर विधानसभा सीट है, जहां पिछले 20 सालों में हर विधायक को मंत्री बनाया गया है। इस सीट पर कोई भी पार्टी अपना वर्चस्व नहीं बना पाई है। इस सीट से भाजपा के लाल मुनी चौबे, राजद के महाबली सिंह, और अन्य नेताओं का नाम शामिल है।
बिहार की कुछ और हॉट सीट्स में दरभंगा ग्रामीण, समस्तीपुर, हसनपुर, मोरवा, विभूतिपुर, मधुबनी, और लौकहा शामिल हैं। इनमें से छह सीटों पर राजद और एक पर माकपा का कब्जा है।
वहीं लखीसराय का सूर्यगढ़ा सीट है, जिस पर जेडीयू कभी जीत नहीं पाई है। यह सीट मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। 19902020
पूर्वी चंपारण जिले की मोतिहारी सीट पर भाजपा पिछले 20 वर्षों से अजेय है। यहां से पहले दो अन्य दल ने जीत की हैट्रिक बनाई है।
साथ ही, हिलसा, बरबीघा, मटिहानी, भोरे, सिकटा, कल्याणपुर, और अन्य सीटों पर हार-जीत का अंतर 12 से 3,000 वोट के बीच का है। इन सीटों पर दोनों गठबंधनों की नजरें टिकी हुई हैं।
14 नवंबर को चुनाव परिणाम के बाद ही स्पष्ट होगा कि बिहार की जनता का आशीर्वाद किस गठबंधन के साथ है।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                             
                             
                             
                            