क्या धर्मेंद्र ने बच्चों को इंसानियत का सबसे बड़ा तोहफा दिया था?
सारांश
Key Takeaways
- धर्मेंद्र का जीवन इंसानियत का प्रतीक है।
- संस्कारों का महत्व कभी नहीं भूलना चाहिए।
- परिवार और प्यार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- अच्छे इंसान बनने की प्रेरणा महत्वपूर्ण है।
- धर्मेंद्र का अनुभव हमें सिखाता है कि रिश्ते कितने अहम होते हैं।
मुंबई, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी सिनेमा के महानायक धर्मेंद्र देओल का निधन हाल ही में 24 नवंबर को हुआ था। इस दिग्गज अभिनेता को उनकी अभिनय, फिल्मों और मिलनसार व्यवहार के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
धर्मेंद्र ने अपने करियर की शुरुआत पंजाब के एक छोटे से गांव से की और मुंबई चले आए। यहाँ आकर भी उन्होंने अपने माता-पिता द्वारा सिखाए गए संस्कार को नहीं भुलाया।
उनका जन्म 8 दिसंबर को हुआ था। उन्होंने हमेशा फिल्मों के अलावा परिवार, प्यार और संस्कारों की अहमियत बताई। जब भी मौका मिला, अपने माता-पिता को याद किया। एक पुराने इंटरव्यू में, उन्होंने कहा कि आज जो कुछ भी हैं, वो अपने माता-पिता की बदौलत हैं।
उन्होंने एक कविता भी सुनाई, जिसमें अपने पिता के बारे में कहा कि "मेरे पिता ने एक नीम का पौधा लगाया था, जो अब एक घना दरख्त बन चुका है। जब भी पिताजी की याद आती है, मैं उस पेड़ के नीचे जाता हूं। ऐसा लगता है जैसे बाऊजी मेरे पास हैं और कह रहे हैं कि 'धरम, मैं तेरे साथ हूं।'
उन्होंने आगे कहा कि मेरे माता-पिता ने हमेशा मुझे इंसानियत का ताबीज पहनाया था और उनके संस्कार ही मेरी सबसे बड़ी दौलत हैं। यही ताबीज मैंने अपने बच्चों को भी दी है। हमें मजहब के बारे में नहीं बताया गया, बल्कि हमें अच्छे इंसान बनने के लिए प्रेरित किया गया।
धर्मेंद्र ने दो शादियां कीं और दोनों परिवारों को संभाला। सनी देओल, बॉबी देओल और ईशा देओल को अच्छे संस्कार दिए हैं। जब भी सनी देओल अपने पिता की बात करते हैं, उनकी आँखें नम हो जाती हैं। उन्होंने एक किस्सा साझा करते हुए कहा कि पापा ने हमेशा कहा कि हमें दोस्त मानें, लेकिन जब भी हम उनसे दोस्त की तरह बात करते, वे पापा बन जाते थे।