क्या गौरी व्रत से मिलती है अखंड सुहाग और मनचाहा वर?

सारांश
Key Takeaways
- गौरी व्रत का आयोजन हर वर्ष आषाढ़ मास की एकादशी से पूर्णिमा तक होता है।
- यह व्रत कन्याओं और सुहागिनों के लिए विशेष है।
- पूजा में मां गौरी के साथ भगवान शिव और गणेश जी की भी पूजा की जाती है।
- इस व्रत के अंत में छोटी कन्याओं को भोजन कराना और वस्त्र भेंट करना महत्वपूर्ण है।
- गौरी व्रत के दौरान त्रिपुष्कर योग व रवि योग का महत्व है।
नई दिल्ली, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। गौरी व्रत हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से आरंभ होकर पूर्णिमा को समाप्त होता है। इस वर्ष यह व्रत 6 जुलाई से प्रारंभ होकर 10 जुलाई को समाप्त होगा।
गौरी व्रत विशेष रूप से कन्याओं और सुहागिनों द्वारा मां गौरी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, ताकि उन्हें एक योग्य वर और सुखद वैवाहिक जीवन मिले। यह व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है।
मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठिन तप और उपवास किया था। उसी परंपरा के अनुसार कन्याएं यह व्रत करती हैं, ताकि उन्हें एक योग्य या मनचाहा वर और सुखद वैवाहिक जीवन मिल सके। इस व्रत में मुख्य रूप से मां गौरी की पूजा की जाती है। इसके साथ ही भगवान शिव, गणेश जी और कई स्थानों पर देवी गौरी की मिट्टी या धातु की प्रतिमा का पूजन भी होता है।
व्रत को रखने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर कलश स्थापना करें और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। इसके बाद मां गौरी को हल्दी, कुमकुम, चूड़ी, बिंदी, वस्त्र और सुहाग की सामग्री अर्पित करें। फिर मां गौरी की व्रत कथा सुनें। घी का दीपक जलाएं और मां की आरती करें तथा "ऊँ गौरी त्रिपुरसुंदरी नमः" मंत्र का जाप करें। व्रत समाप्ति के बाद छोटी कन्याओं को भोजन करवाएं और वस्त्र भेंट करें।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (सुबह 09 बजकर 14 मिनट) 5 जुलाई को पड़ रही है। दृक पंचांगानुसार, 6 जुलाई को एकादशी तिथि सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगी, इसके बाद द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। रविवार के दिन त्रिपुष्कर योग, रवि योग के साथ भद्रा का साया भी रहेगा।
जानकारी के अनुसार, 'त्रिपुष्कर योग' तब बनता है जब रविवार, मंगलवार और शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी में से कोई एक तिथि हो और इन दो योगों के साथ विशाखा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु और कृत्तिका नक्षत्र हो। वहीं, रवि योग तब बनता है जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से 4, 6, 9, 10, 13 और 20वें स्थान पर हो।
रविवार के दिन भद्रा का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगा। त्रिपुष्कर योग का समय रात के 09 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। साथ ही रवि योग का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।