क्या रूमेटॉयड गठिया के लक्षण दिखने से पहले ही शुरू हो जाता है असर? 7 साल की स्टडी में खुलासा

सारांश
Key Takeaways
- रूमेटॉयड गठिया के लक्षण दिखने से पहले ही यह बीमारी सक्रिय हो जाती है।
- यह शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है।
- सही समय पर पहचान और उपचार से रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
- शोधकर्ताओं ने एसीपीए एंटीबॉडी की पहचान की है जो आरए के खतरे का संकेत देती है।
- इम्यून सेल्स में परिवर्तन आरए के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नई दिल्ली, 25 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। रूमेटॉयड अर्थराइटिस (आरए) के लक्षणों के प्रकट होने से कई साल पहले ही यह बीमारी सक्रिय हो जाती है और शरीर में फैलने लगती है। यह रोग जोड़ों में दर्द और सूजन उत्पन्न करता है, जिससे धीरे-धीरे जोड़ों को नुकसान पहुँचता है। यह जानकारी वैज्ञानिकों ने अपने नवीनतम शोध में दी है।
आरए एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही जोड़ों पर हमला करना शुरू कर देती है। इसके परिणामस्वरूप जोड़ों में सूजन आती है और वे कमजोर होकर समस्याएँ उत्पन्न करने लगते हैं।
पहले यह माना जाता था कि यह बीमारी तभी शुरू होती है, जब मरीज को जोड़ों में दर्द या सूजन का अनुभव होता है, लेकिन नए अध्ययन में यह पाया गया है कि यह बीमारी शरीर में बहुत पहले से सक्रिय हो जाती है, जब कोई भी लक्षण प्रकट नहीं होते।
साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित नए शोध से यह स्पष्ट होता है कि बीमारी के प्रारंभिक अवस्था में केवल जोड़ों की सूजन नहीं होती, बल्कि पूरे शरीर में सूजन का एक प्रकार फैल जाता है। अर्थात, यह रोग केवल जोड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है।
अमेरिकी एलन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता मार्क गिलेस्पी ने बताया, "यह अध्ययन चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को मदद करेगा ताकि वे इस बीमारी को जल्दी पहचान सकें और समय पर उपचार कर सकें।"
यह अध्ययन सात वर्षों तक चला, जिसमें उन लोगों का ट्रैक रखा गया जिनके खून में एसीपीए नाम के एंटीबॉडी पाए गए थे। ये एंटीबॉडी संकेत करते हैं कि कोई व्यक्ति आरए के खतरे में है या नहीं। शोधकर्ताओं ने इस दौरान कई नई जानकारियाँ प्राप्त कीं, जिनमें शरीर में सूजन का फैलाव, इम्यून सेल्स की गड़बड़ी और सेल्स का कार्य करने का तरीका बदल जाना शामिल है।
टीम ने पाया कि शरीर की कुछ विशेष इम्यून सेल्स, जैसे बी सेल्स, जो आमतौर पर संक्रमण से लड़ने वाले अच्छे एंटीबॉडी बनाते हैं, आरए के खतरे वाले लोगों में सूजन बढ़ाने वाले एंटीबॉडी बनाने लगे थे। वहीं, टी हेल्पर सेल्स की एक विशेष किस्म, टीएफएच17, भी सामान्य से अधिक बढ़ गई थी, जो सूजन को और बढ़ावा देती है।
इसके अतिरिक्त, 'नेव' टी सेल्स में भी डीएनए स्तर पर बदलाव (एपिजेनेटिक बदलाव) पाए गए।
शोध में यह भी देखा गया कि खून में मौजूद मोनोसाइट्स नाम की श्वेत रक्त कोशिकाएं भी असामान्य रूप से अधिक सूजन पैदा कर रही थीं। ये कोशिकाएं ठीक उन मैक्रोफेज जैसी थीं, जो आरए के मरीजों के जोड़ों में सूजन उत्पन्न करती हैं, जिससे पता चलता है कि बीमारी जोड़ों को नुकसान पहुँचाने के लिए पहले से ही शरीर में तैयारी कर रही है।