क्या मांझी का इमामगंज है मजबूत गढ़? जन सुराज की एंट्री से समीकरण कैसे बन रहे हैं?
सारांश
Key Takeaways
- इमामगंज में चुनावी समीकरण बदल रहे हैं।
- जीतन राम मांझी का गढ़ चुनौती में है।
- दीपा कुमारी और रीतू प्रिया चौधरी के बीच मुकाबला है।
- जन सुराज का प्रभाव बढ़ रहा है।
- यह चुनाव मांझी परिवार के लिए एक कठिन परीक्षा है।
पटना, 1 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में गयाजी जिले का इमामगंज हमेशा से एक खास पहचान रखता है। यह केवल एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि वह क्षेत्र है जहां पहाड़, जंगल और ऐतिहासिक विद्रोह की कहानियां गूंजती हैं।
विधानसभा चुनाव 2025 में पहली बार दो प्रमुख राजनीतिक दलों की महिला उम्मीदवार एक-दूसरे के सामने खड़ी होकर एक कड़ा मुकाबला करने को तैयार हैं। यह मुकाबला केवल सीटों के लिए नहीं, बल्कि विकास के वादों और राजनीतिक विरासत को संजोने की भी चुनौती है।
इमामगंज सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और यहां उम्मीदवार-केंद्रित राजनीति का बोलबाला रहा है। इसे पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का गढ़ माना जाता है। उन्होंने जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर अपनी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के तहत 2015 और 2020 के चुनावों में जीत हासिल की।
2024 में जीतन राम मांझी के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उपचुनाव में मांझी की बहू दीपा कुमारी ने यह सीट बरकरार रखी, लेकिन जीत का अंतर केवल 5,945 वोटों का रहा। इसका मुख्य कारण प्रशांत किशोर की जन सुराज के उम्मीदवार द्वारा 37,082 वोटों के साथ मुकाबले को त्रिकोणीय बना देना था।
दीपा कुमारी अपने ससुर जीतन राम मांझी के नौ साल के कार्यकाल और विधायक बनने के बाद आठ महीनों में किए गए अपने कार्यों पर वोट मांग रही हैं। वहीं, रीतू प्रिया चौधरी (राजद/महागठबंधन) पार्टी के विकास और नौकरी के वादों को आधार बनाकर मतदाताओं से वोट अपील कर रही हैं।
इस पारंपरिक द्वंद्व को जन सुराज के अजीत दास त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो प्रशांत किशोर के 'नया बिहार' बनाने के घोषणा के साथ जनता के बीच जा रहे हैं।
यह विधानसभा चुनाव मांझी परिवार के लिए अपनी विरासत को बचाने की एक कठिन परीक्षा है। दीपा कुमारी और रीतू प्रिया चौधरी रोजगार और विकास के नए वादों के साथ चुनावी मैदान में हैं। इन दोनों के बीच जन सुराज की मजबूत उपस्थिति मुकाबले को और भी अप्रत्याशित बना रही है।
गयाजी जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर पश्चिम में स्थित इमामगंज का नाम शेरघाटी के राजा इमाम बख्श खान के नाम पर पड़ा है। ब्रिटिश हुकूमत के समय 'कोल विद्रोह' में भी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
इमामगंज प्रखंड 255 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें 195 गांव शामिल हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की साक्षरता दर 59.61 प्रतिशत है।