क्या इंद्रजीत लांबा ने 53 की उम्र में देश को पदक दिलाया? बने व्यक्तिगत घुड़सवारी में भाग लेने वाले भारत के पहले ओलंपियन

सारांश
Key Takeaways
- इंद्रजीत लांबा ने 53 वर्ष की उम्र में भारतीय घुड़सवारी को नया मुकाम दिया।
- उन्हें 1996 के अटलांटा ओलंपिक में भाग लेने का गौरव मिला।
- उनका घोड़ा 'करिश्मा' उनके साथी रहा।
- लांबा की मेहनत और समर्पण ने उन्हें सफलता दिलाई।
- उम्र केवल एक संख्या है, जो सपनों को पूरा करने में बाधा नहीं बन सकती।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दिसंबर 2002, दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में एशियन गेम्स का आयोजन हुआ। हवा में धूल और जोरदार शोर के बीच लाखों उम्मीदों का बोझ था। अचानक दर्शकों की दीर्घा से एक लंबी सांस निकलती है, जब भारत का एक घुड़सवार अपने घोड़े के साथ अंतिम बाधा (शो जम्पिंग) के लिए तैयार होता है। उनकी उम्र 53 थी। एक ऐसा समय जब अधिकांश एथलीट अपने जूते टांग चुके होते हैं। लेकिन इस खिलाड़ी के लिए, उम्र केवल एक संख्या थी। यह कहानी है उस अदम्य भारतीय घुड़सवार की, जिसने अपने जीवन के पांचवे दशक में भी देश के लिए पदक जीता।
इंद्रजीत लांबा का जन्म 7 अक्टूबर 1949 को हुआ, जब भारत में घुड़सवारी मुख्यतः सेना और अभिजात वर्ग का खेल मानी जाती थी। लेकिन लांबा के लिए घोड़ा कभी भी केवल एक जानवर या खेल का उपकरण नहीं था। वह उनके लिए एक साथी, एक शिक्षक और एक अद्भुत भाषा का वाहक था।
उनका प्रारंभिक जीवन सेना या पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों के आस-पास बीता, जहां घोड़ों के प्रति अनुशासन और सम्मान का संबंध प्रारंभ हुआ। घुड़सवारी की तीन मुख्य विधाएं (ड्रेसेज, क्रॉस-कंट्री और शो जंपिंग) हैं, और लांबा ने वर्षों तक इन विधाओं में महारत हासिल की।
उन्होंने घुड़सवारी का चयन किया जब इसमें आधुनिक सुविधाएं और अंतरराष्ट्रीय स्तर का समर्थन न के बराबर था। यह एक ऐसा मार्ग था जहां हारने पर सांत्वना नहीं मिलती थी और जीतने पर क्रिकेटरों जैसी शोहरत भी नहीं। यह रास्ता केवल आत्मा की संतोषजनकता और देश के प्रति कुछ कर गुजरने के जज्बे के लिए चुना जाता था।
1990 का दशक भारतीय घुड़सवारी के लिए एक बड़ा मोड़ था, और इस मोड़ पर इंद्रजीत लांबा की तपस्या रंग लाई। उन्हें 1996 के अटलांटा ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त हुआ। यह व्यक्तिगत इवेंटिंग स्पर्धा थी, जो घुड़सवारी की सबसे कठिन विधा मानी जाती है।
ओलंपिक में उनका साथी था, उनका वफादार घोड़ा 'करिश्मा'। यह जोड़ी ओलंपिक में एक करिश्मा साबित हुई। हालांकि, वे पदक की दौड़ से बाहर हो गए।
2002 के एशियाई खेलों में, 53 वर्ष की आयु में, लांबा ने अपनी अंतिम बड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया। फाइनल राउंड में, लांबा ने अपने अनुभव और शांत स्वभाव का परिचय दिया। जब परिणाम घोषित हुए, तो वह पल भारतीय घुड़सवारी के इतिहास में दर्ज हो गया।