क्या है शिव का ऐसा अद्भुत धाम, जहां मंदिर के पत्थर से आती है डमरू की आवाज?

सारांश
Key Takeaways
- जटोली शिव मंदिर एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर है।
- इस मंदिर के पत्थरों से डमरू की आवाज आती है।
- स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने इसका निर्माण किया।
- यहां का जल कुंड औषधीय गुणों से भरपूर है।
- मंदिर को 2013 में भक्तों के लिए खोला गया।
नई दिल्ली, 18 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। देवाधिदेव महादेव का संसार बेहद अद्भुत है। देश में शिव के प्रसिद्ध धामों की एक विशाल श्रृंखला है। इसके अलावा, कुछ ऐसे धाम भी हैं जो रहस्यमयी हैं और इनके बारे में सुनकर आप चकित रह जाएंगे। ये धाम अपने चमत्कारों के लिए भी जाने जाते हैं, जहां विज्ञान भी नतमस्तक हो जाता है। भारत में 'देव भूमि' के नाम से मशहूर और बर्फीले पहाड़ों के लिए प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा ही शिव मंदिर है जो रहस्यों से भरा हुआ है। इस मंदिर के पत्थर से डमरू की आवाज आती है।
हालांकि, हिमाचल के सोलन जिले में स्थित इस शिव मंदिर की स्थापना आधुनिक समय में की गई है और इसे बनाने में 39 वर्ष का समय लगा। इस शिव मंदिर के रहस्यों को जानकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। दरअसल, इसे एशिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर कहा जाता है, जिसे जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। जब आप इसके पत्थरों को थपथपाएंगे, तो आपको डमरू की ध्वनि सुनाई देगी।
इस मंदिर का निर्माण स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने 1950 में सोलन की इस दुर्गम पहाड़ी पर करने का संकल्प लिया। लगभग 39 वर्षों की मेहनत के बाद इस मंदिर का निर्माण पूरा हुआ, लेकिन 1983 में स्वामी जी का निधन हो गया। फिर उनके शिष्यों ने स्वामी जी के अधूरे सपनों को साकार किया और इस मंदिर का निर्माण पूर्ण किया।
सोलन में पहाड़ की दुर्गम और सबसे ऊँची चोटी पर 111 फीट ऊँचा यह मंदिर एशिया के सबसे ऊँचे मंदिर का गौरव धारण करता है। इसे दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है, जो उत्तर से दक्षिण के एकीकरण को दर्शाता है। इसके सबसे ऊँचे शिखर पर एक विशाल सोने का कलश है जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है। इस मंदिर के अंदर महादेव का शिवलिंग भव्य है और यह स्फटिक मणि का बना है। यहीं स्वामी कृष्णानंद की समाधि भी स्थित है।
इसके साथ ही, इस मंदिर के निर्माण की जगह के बारे में कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव आए थे और कुछ समय के लिए यहाँ वास किया था। इस मंदिर के पास एक प्राचीन शिवलिंग भी है, जिसे यहाँ का विश्राम स्थल माना जाता है। इसके साथ ही भगवान शिव की लंबी जटाओं के कारण इसका नाम जटोली मंदिर पड़ा है।
इस निर्जन पहाड़ी में, जहाँ कोई जलस्त्रोत नहीं है, मंदिर के उत्तर-पूर्व कोने में एक जल कुंड है, जिसे गंगा नदी के समान पवित्र माना जाता है। इस कुंड के जल में औषधीय गुण हैं, जो त्वचा रोगों का इलाज कर सकते हैं। कहते हैं कि जब स्वामी कृष्णानंद परमहंस यहाँ आए, तो उन्होंने देखा कि लोग पानी की समस्या से परेशान हैं। फिर उन्होंने महादेव का घोर तप किया और इस जल कुंड की उत्पत्ति हुई। इसके बाद से इस क्षेत्र में पानी की कमी नहीं हुई।
जटोली शिव मंदिर के निर्माण के पूरा होने के बाद भी इसे दर्शनार्थियों के लिए तुरंत नहीं खोला गया था, फिर 2013 में इसे शिव भक्तों के लिए खोला गया।