क्या झारखंड में भी सियासी हवा बदलेगी जब महागठबंधन से झामुमो अलग हुआ?

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क्या झारखंड में भी सियासी हवा बदलेगी जब महागठबंधन से झामुमो अलग हुआ?

सारांश

क्या झामुमो का महागठबंधन से अलग होना झारखंड की राजनीति को प्रभावित करेगा? जानिए राजनीतिक बवाल के पीछे क्या है और इसके संभावित परिणाम।

Key Takeaways

  • झामुमो ने बिहार में महागठबंधन से अलग होने का ऐलान किया।
  • राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन की समीक्षा की जाएगी।
  • सीएम हेमंत सोरेन अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देंगे।
  • राजनीतिक विश्लेषक नीरज सिन्हा के अनुसार, पार्टी के अंदर असंतोष है।
  • अगले कदम का निर्णय बिहार चुनाव परिणाम के आधार पर होगा।

रांची, 21 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व करने वाला जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) बिहार विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से बाहर हो गया है। जेएमएम यहाँ महागठबंधन के तहत 16 विधानसभा सीटों पर अपनी दावेदारी कर रहा था, लेकिन राजद और कांग्रेस नेतृत्व ने अंतिम समय तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया। इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व न केवल आहत हुआ है, बल्कि उसने झारखंड में राजद और कांग्रेस के साथ अपने मौजूदा गठबंधन की समीक्षा करने का निर्णय लिया है।

पार्टी ने दीपावली के दिन बिहार में महागठबंधन से अलग होने की घोषणा की। झामुमो के वरिष्ठ नेता और झारखंड सरकार में मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा, “बिहार में राजद और कांग्रेस नेतृत्व ने हमें अपमानित किया है। झारखंड के विधानसभा चुनाव में हमने उन्हें उचित हिस्सेदारी दी थी। सरकार बनने के बाद हमने राजद के एक विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल किया। इसके बावजूद उन्होंने हमारे साथ राजनीतिक धोखेबाजी की है, जो सह्य नहीं है।”

सोनू ने इसे 'राजद-कांग्रेस की धूर्तता' करार दिया और बताया कि पार्टी झारखंड में मौजूदा गठबंधन की समीक्षा करेगी। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि बिहार में हुई इस 'बेवफाई' का असर झारखंड की सत्ता पर भी पड़ सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा का कहना है कि झामुमो के नेतृत्व को बिहार में अपमानित होना पड़ा है और इससे पार्टी के अंदर गहरा असंतोष है, लेकिन सीएम हेमंत सोरेन अपनी राजनीतिक परिपक्वता और रणनीतिक समझ के लिए जाने जाते हैं। वे तत्काल गठबंधन तोड़ने जैसा कदम नहीं उठाएंगे, क्योंकि इससे सरकार की स्थिरता पर असर पड़ सकता है।

उन्होंने कहा, “यह संभव है कि झामुमो दबाव की राजनीति के तहत राजद कोटे के मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर कर दे, ताकि यह संदेश जाए कि पार्टी अब और समझौते के मूड में नहीं है।”

झामुमो के पास झारखंड में इतना संख्या बल नहीं है कि वह अकेले सरकार चला सके। वह राजद से रिश्ता भले तोड़ लें, लेकिन सरकार में बने रहने के लिए कांग्रेस का समर्थन आवश्यक है।

वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह कहते हैं, “अगर झामुमो भविष्य में गठबंधन तोड़ने जैसा फैसला करता है, तो इसके पहले वह कांग्रेस और राजद के विधायकों को तोड़कर अपने पाले में करेगा ताकि सरकार चलाने के लिए उनके पास पर्याप्त संख्या बल रहे। हेमंत सोरेन के लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है। वे सियासत के कुशल खिलाड़ी हैं और सरकार चलाने के लिए हर उपाय में माहिर हो चुके हैं, लेकिन ऐसा कोई भी फैसला वे बहुत सोच-समझकर ही लेंगे।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि हेमंत सोरेन इस पूरे घटनाक्रम का मूल्यांकन बिहार चुनाव परिणाम आने तक करेंगे। नवंबर तक के राजनीतिक माहौल को देख कर ही वे अपने अगले कदम का फैसला करेंगे।

Point of View

देश के लिए आवश्यक है कि हम सियासी समीकरणों को समझें। झामुमो का यह कदम न केवल झारखंड की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि इससे अन्य राज्यों में भी राजनीतिक धारा का प्रवाह बदल सकता है। यह समय है जब सभी दलों को अपने गठबंधनों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
NationPress
21/10/2025

Frequently Asked Questions

झामुमो ने महागठबंधन से क्यों अलग होने का निर्णय लिया?
झामुमो ने बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ हुए अपमान के कारण महागठबंधन से अलग होने का निर्णय लिया।
क्या झामुमो अकेले सरकार चला सकता है?
नहीं, झामुमो के पास इतना संख्या बल नहीं है कि वह अकेले सरकार चला सके।
हेमंत सोरेन का अगला कदम क्या हो सकता है?
हेमंत सोरेन राजनीतिक माहौल का मूल्यांकन करने के बाद अपने अगले कदम का फैसला करेंगे।