क्या करनाल के किसान पराली प्रबंधन में मिसाल पेश कर रहे हैं? सब्सिडी योजना से बढ़ी उपज और घटा प्रदूषण

सारांश
Key Takeaways
- सरकार की सब्सिडी योजना से किसानों की उपज में वृद्धि हुई है।
- पराली प्रबंधन में नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
- किसान पर्यावरण की रक्षा में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं।
करनाल, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हरियाणा के करनाल जिले के किसान अब सरकार की कृषि यंत्र सब्सिडी योजना का पूरी तरह से लाभ उठाते हुए पराली प्रबंधन में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। सरकार द्वारा कृषि यंत्रों पर 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की नीति किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है, जिससे न केवल खेतों की उत्पादकता में वृद्धि हुई है, बल्कि प्रदूषण नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण योगदान हो रहा है।
करनाल के ताखाना गांव के किसान बक्शी लाल ने राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में कहा कि पहले धान की कटाई के बाद पराली निपटान सबसे बड़ी समस्या होती थी। मजबूरी में पराली जलाने से प्रदूषण फैलता था और खेत की उर्वरक क्षमता भी कम हो जाती थी। अब किसान एसएमएस (स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम) और सुपरसीडर जैसी मशीनों का उपयोग कर पराली को खेत में ही मिला रहे हैं। इससे खेत की मिट्टी उपजाऊ बनती है। यह डीएपी की एक बोरी के मुकाबले 10 बोरी का काम करती है।
उन्होंने बताया कि कृषि यंत्रों की सरकारी सब्सिडी ने किसानों का आर्थिक बोझ काफी कम कर दिया है। अब हम धान कटाई के बाद पराली को खेत में दबा देते हैं, जिससे मिट्टी में जैविक तत्व बढ़ते हैं और भूमि अधिक उपजाऊ बनती है। तकनीक की मदद से वही पराली मिट्टी के लिए खाद के रूप में काम कर रही है।
बक्शी लाल ने कहा कि कुछ किसान बेलर मशीन से पराली की गांठें बनाकर उसे वाणिज्यिक रूप से बेचकर अतिरिक्त आय भी कमा रहे हैं।
उन्होंने किसानों से अपील की कि पराली को जलाने से बचें, क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है और मिट्टी के उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता घटती है।
उन्होंने कहा, “अगर किसान एसएमएस और सुपरसीडर मशीनों का उपयोग करें तो न केवल उनका खेत उपजाऊ होगा बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।”
कृषि विभाग के अनुसार, करनाल सहित हरियाणा के कई जिलों में पराली प्रबंधन के लिए मशीन सब्सिडी योजना से किसानों में जागरूकता और रुचि तेजी से बढ़ी है, जिससे इस बार पराली जलाने के मामलों में भी काफी कमी आई है।