क्या प्रमोशन में आंतरिक आरक्षण लागू नहीं हुआ तो कर्नाटक सरकार का पतन तय है?

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क्या प्रमोशन में आंतरिक आरक्षण लागू नहीं हुआ तो कर्नाटक सरकार का पतन तय है?

सारांश

बेलगावी में भाजपा नेता ए. नारायणस्वामी ने चेतावनी दी है कि यदि कर्नाटक में प्रमोशन में आंतरिक आरक्षण ठीक से लागू नहीं हुआ, तो मडिगा समुदाय और उसकी उप-जातियां सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले सकती हैं। जानें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर क्या कुछ और कहा गया।

Key Takeaways

  • नारायणस्वामी ने आंतरिक आरक्षण की मांग को उठाया।
  • कर्नाटक में मडिगा समुदाय की समस्याओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • अन्य राज्यों की तुलना में कर्नाटक में स्थिति अस्थिर है।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देश महत्वपूर्ण हैं।
  • राजनीतिक दबाव और आंदोलन की आवश्यकता है।

बेलगावी, 17 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता ए. नारायणस्वामी ने चेतावनी दी है कि यदि राज्य में पदोन्नति (प्रमोशन) में आंतरिक आरक्षण को उचित तरीके से लागू नहीं किया गया, तो उत्पीड़ित मडिगा समुदाय और उसकी उप-जातियां सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेंगी।

बुधवार को बेलगावी में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए नारायणस्वामी ने मांग की कि पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए विधानसभा में संशोधन लाया जाए। उन्होंने कहा कि मडिगा समुदाय ने पहले भी यह साबित किया है कि वे सरकारें बनाने और गिराने की ताकत रखते हैं।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में पदोन्नति में आरक्षण लागू है और इसे कर्नाटक में भी लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे पिछले 20 वर्षों से इस आंदोलन से जुड़े हुए हैं।

नारायणस्वामी ने आरोप लगाया कि वर्ष 2023 में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने विधानसभा चुनाव के दौरान मडिगा उप-जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण का वादा किया था और सत्ता में आने के बाद जनता को गुमराह किया।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि आंतरिक आरक्षण लागू होने के बाद भी कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि यदि किसी राज्य में आवश्यकता हो तो इस सीमा को पार किया जा सकता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ ने आरक्षण को बढ़ाकर 58 प्रतिशत किया है और इस पर हाईकोर्ट की रोक को सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया है।

नारायणस्वामी ने कहा कि राज्य विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है और आंतरिक आरक्षण को एक प्रमुख मुद्दे के रूप में चर्चा में लिया जाना चाहिए।

उन्होंने बताया कि कर्नाटक में आंतरिक आरक्षण की लड़ाई पिछले 35 वर्षों से जारी है, लेकिन सदाशिव आयोग, मधुस्वामी रिपोर्ट और नागमोहन दास रिपोर्ट समेत कई आयोगों की रिपोर्ट जमा होने के बावजूद अब तक न्याय नहीं मिला है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में विधायक दुर्योधन ऐहोले, बसवराज मत्तिमाडु, एससी मोर्चा के राज्य उपाध्यक्ष हूडी मंजुनाथ सहित नेता अनंत, सत्यप्रसाद, राजेंद्र, सिद्धू, रमेश, अजित, मोहन और प्रशांत समेत कई अन्य लोग मौजूद थे।

Point of View

हमें यह समझना चाहिए कि आंतरिक आरक्षण की मांग केवल एक समुदाय की नहीं, बल्कि पूरे राज्य के विकास और समाज में समानता की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी समुदायों को न्याय मिले और केंद्र सरकार इसके प्रति संवेदनशील हो।
NationPress
17/12/2025

Frequently Asked Questions

आंतरिक आरक्षण क्या है?
आंतरिक आरक्षण का मतलब है कि किसी विशेष समुदाय के भीतर विभिन्न उप-जातियों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है।
कर्नाटक में आंतरिक आरक्षण की स्थिति क्या है?
कर्नाटक में आंतरिक आरक्षण की लड़ाई पिछले 35 वर्षों से जारी है और अभी तक न्याय नहीं मिला है।
क्या अन्य राज्यों में आंतरिक आरक्षण लागू है?
हाँ, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु में आंतरिक आरक्षण लागू है।
सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि आंतरिक आरक्षण लागू होने के बाद कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
क्या मडिगा समुदाय सरकार को उखाड़ सकता है?
भाजपा नेता की चेतावनी के अनुसार, यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो मडिगा समुदाय सरकार को उखाड़ने का संकल्प ले सकता है।
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