क्या खगड़िया विधानसभा सीट पर है सियासी शह-मात का खेल?

सारांश
Key Takeaways
- खगड़िया विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास रोचक है।
- कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी प्रमुख दल हैं।
- जातीय समीकरण चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- स्थानीय मुद्दे जैसे बाढ़ और बेरोजगारी प्रभावित करते हैं।
- 2024 में मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है।
पटना, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के खगड़िया जिले की खगड़िया विधानसभा सीट का इतिहास राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत दिलचस्प है। यह सीट, जो 1951 में अस्तित्व में आई, पहले कांग्रेस का अभेद्य गढ़ मानी जाती थी, लेकिन समय के साथ राजनीतिक समीकरणों में बदलाव आया और अब यह जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के बीच एक कठिन प्रतिस्पर्धा का स्थल बन गई है।
अब तक इस सीट पर 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने 5 बार विजय प्राप्त की, जबकि जेडीयू ने 3 बार जीत का परचम लहराया है। संयुक्त समाजवादी पार्टी, निर्दलीय उम्मीदवारों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2-2 बार जीतने का गौरव हासिल किया है, जबकि जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने 1-1 बार इस सीट पर कब्जा जमाया है। हाल के वर्षों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के बीच इस सीट पर सीधा मुकाबला देखने को मिला है।
खगड़िया विधानसभा क्षेत्र में 1952 से 1962 तक कांग्रेस का दबदबा रहा, जब द्वारिका प्रसाद और केदार नारायण सिंह आजाद ने जीत हासिल की। 1967 और 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के राम बहादुर आजाद ने बाजी मारी। 1972 और 1977 में राम शरण यादव ने भारतीय जनसंघ और निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की।
1980 में जनता पार्टी और 1985 में कांग्रेस ने वापसी की। 1990 में निर्दलीय रणवीर यादव और 1995 में भाजपा की चंद्रमुखी देवी विजयी रहीं। 2000 में सीपीआई के गोगेंद्र सिंह ने कब्जा जमाया। 2005 से 2015 तक जेडीयू की पूनम देवी यादव का दबदबा रहा, जिन्होंने लगातार तीन बार जीत हासिल की। हालाँकि, 2020 में कांग्रेस के छत्रपति यादव ने पूनम देवी को मात्र 3,000 वोटों से हराकर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी। इस चुनाव में एलजेपी की रेणु कुमारी ने 20,719 वोट लेकर तीसरा स्थान हासिल किया, जिसने जेडीयू की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2020 के विधानसभा चुनाव में खगड़िया विधानसभा क्षेत्र में 2,60,064 मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनाव तक बढ़कर 2,67,640 हो गए हैं। यह सीट अपनी विविध जनसंख्या और जातीय समीकरणों के लिए जानी जाती है। आंकड़ों के अनुसार, खगड़िया में वैश्य 50,000, यादव 32,000, दलित 30,000, मुस्लिम 24,000, अगड़ी जाति 20,000, कुर्मी 18,000, कोयरी 16,000, पासवान 15,000, सहनी 15,000 और अन्य जातियों के मतदाता 45,000 हैं।
इन समुदायों का संतुलन इस क्षेत्र के चुनावी परिदृश्य को आकार देता है, जहां यादव, भूमिहार, ब्राह्मण, कुर्मी, पासवान और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। खगड़िया की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं। यादव सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं और अपनी एकजुटता के लिए जाने जाते हैं, जो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसे दलों के लिए मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
दूसरी ओर, भूमिहार और ब्राह्मण परंपरागत रूप से ऊंची जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) जैसे दलों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। वहीं, कुर्मी और कोयरी जैसे मध्यम वर्ग के किसान समुदाय भी अपनी संख्या और संगठित वोटिंग पैटर्न के कारण सभी सियासी दलों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहते हैं। दलित और पासवान समुदाय अपने सामाजिक अधिकारों को लेकर मुखर रहते हैं, जो लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और अन्य दलित-केंद्रित राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
अगर हम मुस्लिम वोटरों की बात करें तो अभी तक के परंपरागत वोटिंग पैटर्न के आधार पर कहा जा सकता है कि उनका स्वाभाविक रुझान राजद और कांग्रेस जैसे दलों के पक्ष में रहता है। वहीं, सहनी समाज और अपेक्षाकृत बेहद कम आबादी वाली जातियां भी बेहद अहम हैं।
स्थानीय मुद्दे जैसे बाढ़, बेरोजगारी और कृषि संकट भी वोटरों के मन को प्रभावित करते हैं। कोसी नदी के किनारे बसा खगड़िया बार-बार बाढ़ की चपेट में आता है। इस क्षेत्र में गंगा, बूढ़ी गंडक, बागमती और कोसी नदियां बहती हैं, जिसके कारण बाढ़, कटाव और पुनर्वास प्रमुख समस्याएं हैं।