क्या सुरेंद्र दुबे के बिना छत्तीसगढ़ की कल्पना संभव है? : कुमार विश्वास

सारांश
Key Takeaways
- पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन छत्तीसगढ़ के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
- कवि कुमार विश्वास ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके योगदान को याद किया।
- छत्तीसगढ़ी साहित्य और हास्य काव्य में उनका स्थान अमिट रहेगा।
- उनका योगदान न केवल साहित्यिक था, बल्कि सांस्कृतिक भी था।
- उनकी हास्य कला ने पूरे भारत को प्रभावित किया।
रायपुर, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के निधन पर कवि कुमार विश्वास ने गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचकर पद्मश्री सुरेंद्र दुबे को अंतिम श्रद्धांजलि दी।
कवि कुमार विश्वास ने सुरेंद्र दुबे को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "मेरी पहली मुलाकात उनसे 1991 में हुई थी। मैंने उनके पूरे सफर को देखा है। वह एक छोटे से स्थान से निकलकर दुर्ग आए और फिर रायपुर पहुंचे। उनका जाना हमारे लिए अत्यंत दुखद है और हम सुरेंद्र दुबे के बिना छत्तीसगढ़ की कल्पना नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि उनका निधन छत्तीसगढ़ के लिए एक महान हानि है और हमें इससे उबरने में समय लगेगा।"
छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष रमन सिंह ने भी पद्मश्री सुरेंद्र दुबे को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, "सुरेंद्र दुबे कॉलेज में मेरे जूनियर थे, वे मुझसे एक वर्ष छोटे थे। मेरा उनसे बहुत नज़दीकी रिश्ता था। उनकी आवाज ऐसी थी मानो वह छत्तीसगढ़ से निकलती हो और छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाती हो। उनकी हास्य कला अद्भुत थी, जिससे पूरा भारत और दुनिया हंसते थे। छत्तीसगढ़ में गांव हो, शहर हो या गली-मोहल्ला, उनकी लोकप्रियता का कोई मुकाबला नहीं था।"
हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारत सरकार ने उन्हें 2010 में देश के चौथे उच्चतम नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया था।
उनके निधन पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय समेत कई नेताओं ने गहरा दुख व्यक्त किया। सीएम ने एक्स अकाउंट पर लिखा, "छत्तीसगढ़ी साहित्य व हास्य काव्य के शिखर पुरुष, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। अचानक मिली उनके निधन की सूचना से स्तब्ध हूं। अपने विलक्षण हास्य, तीक्ष्ण व्यंग्य और अनूठी रचनात्मकता से उन्होंने न केवल देश-विदेश के मंचों को गौरवान्वित किया, बल्कि छत्तीसगढ़ी भाषा को वैश्विक पहचान दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई। जीवनपर्यंत उन्होंने समाज को हंसी का उजास दिया, लेकिन आज उनका जाना हम सभी को गहरे शोक में डुबो गया है। उनकी जीवंतता, ऊर्जा और साहित्य के प्रति समर्पण सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें एवं शोकाकुल परिजनों और असंख्य प्रशंसकों को इस दुःख की घड़ी में संबल प्रदान करें।"