क्या पशुपतिनाथ महादेव मंदसौर से नीमच पहुंचे कांवड़ यात्री का भव्य स्वागत हुआ?

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क्या पशुपतिनाथ महादेव मंदसौर से नीमच पहुंचे कांवड़ यात्री का भव्य स्वागत हुआ?

सारांश

इस वर्ष कांवड़ यात्रा ने एक बार फिर से नीमच में धूम मचाई। पशुपतिनाथ महादेव से शुरू होकर नीमच तक का यह आयोजन, शिवभक्तों का जोश और श्रद्धा का अद्वितीय उदाहरण है। जानिए इस यात्रा के बारे में और कैसे कांवड़ियों का भव्य स्वागत किया गया।

Key Takeaways

  • कांवड़ यात्रा का आयोजन हर वर्ष श्रावण मास में होता है।
  • यह यात्रा मंदसौर से नीमच तक होती है।
  • कांवड़ यात्रा में बड़ी संख्या में शिवभक्त शामिल होते हैं।
  • यात्रा के दौरान भव्य स्वागत के लिए विशेष तैयारियाँ की जाती हैं।
  • इस यात्रा का उद्देश्य भगवान शिव का जलाभिषेक करना है।

नीमच, 21 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सावन के महीने में कांवड़ियों का उत्साह अद्वितीय होता है। कांवड़ यात्रा में भाग ले रहे शिवभक्त महादेव के उद्घोष और बम-बम के नारे लगाते हुए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं। इस अवसर पर रास्तों पर कांवड़ियों के स्वागत का विशेष प्रबंध किया गया है। इसी क्रम में, कांवड़ यात्री मध्य प्रदेश के पशुपतिनाथ महादेव, मंदसौर से नीमच पहुंचे। इस दौरान कई स्थानों पर यात्रा में शामिल कांवड़ियों का भव्य स्वागत किया गया।

इस वर्ष भी श्रावण मास के द्वितीय सोमवार को नीमच में मंदसौर के पशुपतिनाथ महादेव से नीमच तक भव्य कांवड़ यात्रा निकाली गई। इस यात्रा में मंदसौर से भगवान पशुपतिनाथ महादेव का जलाभिषेक कर शिवना नदी के पवित्र जल को भरकर कांवड़ यात्रा बम-बम भोले के जयघोष के साथ नीमच पहुंची। यात्रा के मार्ग में जगह-जगह पुष्प वर्षा से भव्य स्वागत किया गया। यात्रा में बड़ी संख्या में महिला और पुरुष शिवभक्त शामिल हुए।

कांवड़ यात्रा के संदर्भ में जानकारी देते हुए यात्रा समिति के सदस्य ने बताया, "हर वर्ष श्रावण मास में कांवड़ यात्रा निकाली जाती है। यह कांवड़ यात्रा मंदसौर पशुपतिनाथ से अभिषेक कर कांवड़ भर कर प्रारंभ होती है, जो नीमच पहुंचती है। इस वर्ष यात्रा का यह 15वां वर्ष है। कांवड़ यात्रा में बड़ी संख्या में शिवभक्त शामिल हुए। यह यात्रा लगभग 70 किलोमीटर की थी।"

उन्होंने बताया, "शनिवार को सभी यात्री मंदसौर पशुपतिनाथ पहुंचे थे, जहां रविवार को भगवान भोलेनाथ का अभिषेक कर यात्रा प्रारंभ हुई और कांवड़िए रविवार शाम हिंगोरिया फाटक स्थित बालाजी मंदिर पर रात्रि विश्राम के लिए रुके। इसके पश्चात सोमवार को सुबह यात्रा गाजे-बाजे व डीजे के साथ प्रारंभ हुई जो प्रमुख मार्गों से होती हुई जूना सतनारायण मंदिर पहुंची। यहां अभिषेक एवं महाआरती की गई। इस बार यात्रा का मुख्य आकर्षण बाबा का रथ, 1 क्विंटल जल की कांवड़, डमरू की कांवड़, और भोले बाबा की पालकी कांवड़ रही।

Point of View

बल्कि यह भारतीय संस्कृति और श्रद्धा का प्रतीक है। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल धर्म का प्रचार होता है, बल्कि यह समाज में एकता और भाईचारे का भी संदेश फैलाते हैं। हमें हमेशा ऐसे आयोजनों का समर्थन करना चाहिए।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

कांवड़ यात्रा का उद्देश्य क्या है?
कांवड़ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की आराधना करना और श्रद्धा के साथ जलाभिषेक करना होता है।
कांवड़ यात्रा में कितने लोग शामिल होते हैं?
हर वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं, जो स्थानीय और दूर-दूर से आते हैं।
क्या कांवड़ यात्रा में कोई विशेष तैयारी की जाती है?
जी हां, यात्रा से पहले समिति द्वारा सभी तैयारियों का ध्यान रखा जाता है, जैसे कि जल का संग्रह, मार्ग की पहचान आदि।
कांवड़ यात्रा कैसे आयोजित की जाती है?
कांवड़ यात्रा स्थानीय मंदिरों से शुरू होती है और श्रद्धालु एक निश्चित मार्ग पर चलकर जलाभिषेक करते हैं।
कौन-कौन से स्थानों पर कांवड़ यात्रा होती है?
कांवड़ यात्रा विभिन्न स्थानों पर होती है, लेकिन प्रमुख रूप से मंदसौर और नीमच जैसे शहरों में होती है।