भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह: राजस्थान की प्रमुख कलाएं, क्या इनमें इतिहास और विरासत की झलक है?
सारांश
Key Takeaways
- राजस्थानी हस्तशिल्प में गहरी सांस्कृतिक धरोहर है।
- अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह भारतीय कला को बढ़ावा देता है।
- राजस्थान की कला वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध है।
- कला का संरक्षण आवश्यक है।
- कारीगरों का समर्थन हमारी जिम्मेदारी है।
नई दिल्ली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह (8 से 14 दिसंबर) हर साल हमें यह याद दिलाता है कि भारत की असली खूबसूरती न केवल उसके महलों, मंदिरों या पहाड़ों में होती है, बल्कि उन कारीगरों के हाथों में भी होती है, जो मिट्टी, धातु, लकड़ी, कपड़े और रंगों से अद्भुत चीजें बनाते हैं। इसमें राजस्थान का नाम सबसे प्रमुख है।
राजस्थानी कला न केवल पुरानी परंपराओं को समेटती है, बल्कि इसकी रंगीनता, अंदाज और बारीकी से पूरी दुनिया को मोहित कर देती है। इस विशेष सप्ताह में राजस्थान की हस्तकला की चर्चा करना जैसे रेत के कणों में इतिहास की चमक को खोजना है।
राजस्थान की धरती सच में रंगों की खान है। यहाँ का हर क्षेत्र किसी न किसी विशेष शिल्प के लिए मशहूर है। जयपुर की गलियों में चलते समय आपको ब्लू पॉटरी की नीली-धुंधली खूबसूरती देखने को मिलेगी। यह कला फारसी शैली और चीनी ग्लेज तकनीक का अद्भुत मेल है, जिसे देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाता है। प्लेटें, कटोरियां और शोपीस सब कुछ बेजोड़ लगता है।
इसी प्रकार, जयपुर की प्रसिद्ध मीनाकारी भी किसी जादू से कम नहीं है। सोने-चांदी के गहनों में भरी जाने वाली रंगीन परतें जब सूर्य की रोशनी में चमकती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे रंग खुद अपनी कहानी कह रहे हों। यह कला मुगल काल से चली आ रही है और आज भी जयपुर इस कला का प्रमुख केंद्र है। शादी-ब्याह के मौसम में इसकी मांग पूरे देश में बढ़ जाती है।
अब जोधपुर की बात करें तो यहाँ की लकड़ी की नक्काशी इसकी पहचान है। जोधपुर के कारीगर साधारण लकड़ी को इस तरह तराशते हैं कि वह शाही फर्नीचर में बदल जाती है। दरवाजे, चारपाइयां और झरोखे, हर चीज में इतनी बारीकी होती है कि देखने वाले को हैरानी होती है।
यहाँ की कोफ्तगिरी कला भी प्रसिद्ध है, जिसमें हथियारों या धातु की सतह पर सोने-चांदी के तार जड़े जाते हैं। पुराने राजपूत सरदारों की तलवारें इसी कला से सजी रहती थीं।
राजस्थान की एक और धरोहर है टेराकोटा कला, जो मिट्टी में बसे जीवन की खुशबू लिए हुए है। मोलेला और हरजी गांव इसके बड़े केंद्र हैं, जहाँ कारीगर हाथों में मिट्टी लेकर ऐसी मूर्तियां तैयार करते हैं, जो देखने में साधारण पर अत्यधिक आकर्षक होती हैं। घर की सजावट में इनकी मांग हमेशा रहती है।
बगरू और सांगानेर की छपाई पूरे देश में मशहूर है। लकड़ी के ब्लॉकों पर बने डिज़ाइन, प्राकृतिक रंग और कपड़े पर की जाने वाली छपाई एकदम देसी, सुंदर और टिकाऊ होती है। यही कारण है कि जयपुर की छपाई को फैशन डिजाइनर भी पसंद करते हैं।
बीकानेर के ऊंट के चमड़े के शिल्प, जालौर के हाथ से बने खेसले और कठपुतलियों की पारंपरिक कला भी राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा हैं। ये वस्तुएं केवल चीजें नहीं हैं, बल्कि राजस्थान की कहानियां हैं जो पीढ़ियों से चलती आ रही हैं।