क्या कर्तव्य पथ पर सेना के ‘मूक योद्धा’ परेड में दिखेंगे भारतीय नस्ल के कुत्ते?
सारांश
Key Takeaways
- भारतीय सेना के पशु दस्ते का परेड में शामिल होना एक नई परंपरा है।
- कुत्ते और ऊंट जैसे पशु हमारे देश की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- यह परेड हमें यह याद दिलाएगी कि रक्षा केवल तकनीकी साधनों से नहीं होती।
नई दिल्ली, 31 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। गणतंत्र दिवस 2026 पर इस बार कर्तव्य पथ पर एक अनोखा और भावनात्मक दृश्य उपस्थित होगा। भारतीय सेना के पशु दस्ते पहली बार इतनी बड़ी और संगठित संख्या में परेड में भाग लेंगे। ये पशु न केवल सेना की शक्ति का प्रदर्शन करेंगे, बल्कि यह भी दर्शाएंगे कि देश की रक्षा में उनके योगदान को कितनी महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।
इस विशेष दस्ते में चार शिकारी पक्षी (रैप्टर्स) शामिल होंगे। इसके अलावा, भारतीय नस्ल के 10 सेना के कुत्ते और सेना में पहले से कार्यरत 6 पारंपरिक सैन्य कुत्ते भी होंगे। इसके साथ ही दो बैक्ट्रियन ऊँट और जांस्कर पोनी भी परेड दस्ते का हिस्सा होंगी। सेना के अनुसार, इस परेड का सबसे भावुक हिस्सा भारतीय सेना के कुत्ते हैं, जिन्हें प्यार से ‘मूक योद्धा’ कहा जाता है।
इन कुत्तों को मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प्स केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है। ये आतंकवाद विरोधी अभियानों, विस्फोटक और बारूदी सुरंगों की पहचान, खोज-बचाव कार्यों और आपदा राहत में सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते हैं। कई मौकों पर इन कुत्तों ने अपनी जान की परवाह किए बिना सैनिकों की जान बचाई है। आत्मनिर्भर भारत के तहत सेना अब मुधोल हाउंड, रामपुर हाउंड, चिप्पीपराई, कोम्बई और राजापलायम जैसी भारतीय नस्लों के कुत्तों को भी बड़े स्तर पर शामिल कर रही है।
यह भारत की अपनी क्षमताओं पर बढ़ते भरोसे का स्पष्ट संकेत है। वहीं, परेड में शामिल चार शिकारी पक्षी (रैप्टर्स) सेना की नई और स्मार्ट सोच को दर्शाते हैं। इनका उपयोग निगरानी और हवाई सुरक्षा से जुड़े कार्यों में किया जाता है, जिससे सेना के अभियान अधिक सुरक्षित बनते हैं।
भारतीय सेना ने बुधवार को जानकारी दी कि दस्ते की अगुवाई बैक्ट्रियन ऊँट करेंगे। इन्हें हाल ही में लद्दाख के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों में तैनात किया गया है। ये ऊंट बहुत ठंडे मौसम और 15,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर आसानी से कार्य कर सकते हैं। ये 250 किलो तक का सामान भी ढो सकते हैं और कम पानी व चारे में लंबी दूरी तय कर सकते हैं। इससे सेना को दूरदराज और कठिन इलाकों में रसद पहुँचाने में बड़ी मदद मिलती है।
इसके बाद, ज़ांस्कर पोनी कदम से कदम मिलाकर चलेंगी, जो कि लद्दाख की एक दुर्लभ और स्वदेशी नस्ल हैं। आकार में छोटी होने के बावजूद, इनमें जबरदस्त ताकत और सहनशक्ति होती है। ये पोनी माइनस 40 डिग्री तापमान और बहुत ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 40 से 60 किलो वजन लेकर चल सकती हैं। साल 2020 से ये सियाचिन जैसे कठिन क्षेत्रों में सैनिकों के साथ सेवा कर रही हैं और कई बार एक दिन में 70 किलोमीटर तक गश्त करती हैं।
गणतंत्र दिवस 2026 पर जब ये पशु कर्तव्य पथ से गुजरेंगे, तो वे यह याद दिलाएंगे कि देश की रक्षा केवल हथियारों से नहीं होती। सियाचिन की बर्फीली चोटियों से लेकर लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान तक, इन पशुओं ने चुपचाप लेकिन मजबूती से अपना फर्ज निभाया है। सेना के अनुसार, ये केवल सहायक नहीं हैं, बल्कि भारतीय सेना के सच्चे साथी और चार पैरों पर चलने वाले वीर योद्धा हैं।