क्या पीएम मोदी के ‘लोकल से ग्लोबल’ विजन से सहारनपुर की नक्काशी को वैश्विक पहचान मिली है?: मोहम्मद दिलशाद
सारांश
Key Takeaways
- शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद दिलशाद ने कारीगरों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- उन्होंने अपनी कला के लिए पाँच दशकों से अधिक समय समर्पित किया है।
- उनकी कारीगरी ने सहारनपुर को वैश्विक पहचान दिलाई है।
- सरकार की योजनाओं का समर्थन उन्हें और अन्य कारीगरों को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।
- उन्होंने ४०० से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित किया है।
सहारनपुर, १३ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के निवासी मोहम्मद दिलशाद को शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस उपलब्धि के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया और केंद्र की योजनाओं को सहायक बताया है।
मोहम्मद दिलशाद एक दक्ष काष्ठकार हैं। उन्होंने भारत की पारंपरिक काष्ठ-नक्काशी की विरासत के संरक्षण के लिए पाँच दशकों से अधिक समय समर्पित किया है। उन्होंने अपने पिता मोहम्मद इशाक से प्रशिक्षण लिया और शास्त्रीय तकनीकों को बनाए रखते हुए नए रूपों और डिजाइनों का विकास किया है।
उन्हें इस कला के लिए राष्ट्रपति द्वारा शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मोहम्मद दिलशाद ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस के साथ विशेष बातचीत में कई प्रश्नों के उत्तर दिए।
सवाल: आपको राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा शिल्प गुरु पुरस्कार-2024 से सम्मानित किया गया, इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब: सरकार ने मेरे काम को सराहा, मीटिंग में इसका उल्लेख हुआ। मुझे चयनित करने और कला को पहचानने के लिए धन्यवाद। मुझे शिल्प गुरु पुरस्कार मिला है।
कपड़ा और वस्त्र मंत्रालय और अन्य अधिकारियों का भी धन्यवाद। यह हमारे लिए एक गर्व का क्षण है। २००५ में यूनेस्को अवॉर्ड प्राप्त किया था। मेरे दोनों बेटों को २००६ में नेशनल अवार्ड मिला। इसके बाद मेरे तीसरे बेटे को २००८ में पुरस्कार मिला। २०१७ में लोकमत सम्मान से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्मानित किया। मुझे प्रदर्शनियों में बुलाया जाता है और लोग हस्तकला देखना चाहते हैं।
सवाल: सहारनपुर की नक्काशी आज विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो रही है, इस पर आपकी क्या राय है?
जवाब: मुझे नक्काशी का शौक है। मैंने इसे अपनी आजीविका के लिए नहीं, बल्कि अपने शौक के लिए करना जारी रखा है। यह हमारा पारंपरिक काम है, और यदि यह लोगों को पसंद आ रहा है, तो हम इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं।
सवाल: क्या आपको लगता है कि सरकार के समर्थन से भारतीय कारीगरी आने वाले समय में वैश्विक ब्रांड बनेगी?
जवाब: इसके प्रचार-प्रसार से लोगों को इस कला के बारे में जानकारी मिलेगी। अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। मुझे सम्मानित किया गया, जिससे और लोगों का हौसला भी बढ़ेगा। सबसे बड़ी बात है प्रयास करना। मैं समय निकालकर यह काम करता हूं और लोगों को सिखाता हूं।
देश में लकड़ी पर नक्काशी का जितना प्रचार-प्रसार होगा, उतना ही अच्छा होगा। जिस तरह से सरकार हमें आगे बढ़ाने का काम कर रही है, उससे हमें बहुत लाभ मिल रहा है। सरकार हमें प्रोत्साहित करती है और हम विदेश जाकर इसका प्रचार करते हैं। वहाँ से हमें सम्मान मिलता है।
सवाल: क्या आप मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई ओडीओपी जैसी योजनाओं और कारीगरों के लिए बढ़ते सरकारी समर्थन ने आपकी कला को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है?
जवाब: हाँ, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई ओडीओपी जैसी योजनाओं और कारीगरों के लिए बढ़ते सरकारी समर्थन ने कारीगरों को पहचान दिलाई है। हमें जो भी मार्गदर्शन दिया जाता है, हम उसी के अनुसार काम करते हैं। सरकार और अधिकारियों का समर्थन हमें मिल रहा है। कई लोगों को इसका लाभ हो रहा है।
सवाल: मोदी सरकार द्वारा ‘लोकल से ग्लोबल’ के विजन ने आपके जैसे कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्या अवसर प्रदान किया है?
जवाब: सरकार ने ‘लोकल से ग्लोबल’ का रास्ता दिखाया, जिससे हमें दूर-दूर तक पहुंचने का अवसर मिला। कारीगर बहुत हैं, लेकिन काम के प्रति लगन सबसे महत्वपूर्ण है। सरकार की योजनाओं की वजह से हमारे सामान विदेशों में जाते हैं और उनकी कीमत भी अच्छी मिलती है। इतना ही नहीं, हमें सम्मान भी मिलता है। बहुत लोगों को इस चीज की जानकारी नहीं होती और वे इसके बारे में पता करने की कोशिश नहीं करते कि कारोबार को कैसे आगे बढ़ाया जाए।
सवाल: पुरस्कार जीतने के बाद आपका अनुभव कैसा रहा? क्या आप मानते हैं कि यह सम्मान न केवल आपकी मेहनत की जीत है बल्कि सहारनपुर के कारीगरों को प्रोत्साहित करने का भी बड़ा कदम है?
जवाब: बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ऑर्डर लेती हैं और मुनाफा कमाती हैं, लेकिन कारीगर वहीं के वहीं रह गए। उन्होंने कभी जाकर अपने लिए जानकारी एकत्रित करने की कोशिश नहीं की। बचपन में पढ़ाई छोड़कर अपने पिता के काम को आगे बढ़ाने के लिए हमने मेहनत की। हम हर जगह अपने पिताजी के साथ जाते थे।
बड़ी बात यह है कि जिस तरह से मुझे सम्मानित किया गया और जैसे ही सहारनपुर के लोगों को पता चला कि मुझे सम्मान मिला, तो लोग उत्साहित हो गए। उन्हें यह जानकारी मिली कि हम भी कुछ अलग कर सकते हैं, जिससे सरकार द्वारा हमें भी सम्मानित किया जा सकता है। राष्ट्रपति सम्मान मिलने के बाद, लोगों का आना-जाना लगा रहता है। अब लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है।
सवाल: सरकार लगातार हस्तशिल्प और कारीगरों के लिए नई नीतियाँ ला रही है, क्या आपको लगता है कि इससे युवा पीढ़ी भी इस पारंपरिक कला को अपनाने के लिए प्रेरित होगी?
जवाब: इस पारंपरिक कला को अपनाने के लिए युवाओं को भी आगे आकर हिस्सा लेना चाहिए। सरकार इस कार्य को बढ़ाने के लिए बहुत खर्च कर रही है। सरकार की तरफ से कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है, जहाँ नए-नए गुण सिखाए जाते हैं, जिससे व्यापार में बढ़ोतरी के साथ-साथ सम्मान भी मिलता है।
सवाल: प्रधानमंत्री मोदी बार-बार भारत की कला, संस्कृति और कारीगरों की विरासत को सशक्त करने की बात करते हैं, आप उनके इस प्रयास को कैसे देखते हैं और उन्हें क्या धन्यवाद देना चाहेंगे?
जवाब: सरकार की अच्छी कोशिश है, जो जमीन पर काम करने वाले लोगों के बारे में सोचती है। और एक बड़ी स्टेज पर खड़े होकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जाना, इससे बेहतर क्या हो सकता है?
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता (१९९७), यूनेस्को पुरस्कार प्राप्तकर्ता (२००५), और लोकमत सम्मान (२०१७) से सम्मानित दिलशाद ने ४०० से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित करके कारीगर विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके कार्यों को पूरे भारत और अमेरिका, कनाडा, मिस्र सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया गया है।