क्या संध्या मुखर्जी ने 12 साल की उम्र में रेडियो पर गाया पहला गाना?

सारांश
Key Takeaways
- संध्या मुखर्जी ने 12 साल की उम्र में संगीत की दुनिया में कदम रखा।
- उन्होंने कई शैलियों में संगीत सीखा।
- उनका योगदान हिंदी और बंगाली संगीत में अद्वितीय रहा।
- उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें बंग विभूषण भी शामिल है।
- उन्होंने नए कलाकारों के लिए सम्मान को प्राथमिकता दी।
मुंबई, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। संध्या मुखर्जी का नाम भारतीय संगीत की दुनिया में सदैव सम्मान और प्रेम के साथ लिया जाता है। वे एक ऐसी गायिका थीं, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज से न केवल बंगाली संगीत प्रेमियों का दिल जीता, बल्कि हिंदी फिल्मों में भी अपनी अनोखी पहचान बनाई।
संध्या मुखर्जी का जन्म 4 अक्टूबर 1931 को कोलकाता के ढाकुरिया क्षेत्र में हुआ। उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे और मां गृहिणी थीं। बचपन से ही उनका रुचि संगीत में गहरी थी। वह भजन गाया करती थीं। उनकी पहली बड़ी उपलब्धि तब हुई जब वे 12 साल की थीं और रेडियो पर उनका पहला गाना प्रसारित हुआ। इसके लिए उन्हें 5 रुपए मिले थे, जो उस समय बच्चों के लिए एक बड़ी राशि थी। यह उनके लिए एक नया सफर शुरू करने जैसा था।
संध्या मुखर्जी ने संगीत की विभिन्न शैलियों का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने कड़ी मेहनत की और संगीत के दिग्गज गुलाम अली खान जैसे गुरुओं से शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को सीखा। उनकी आवाज में एक अद्भुत मिठास थी, जो सुनने वालों के दिल को छू जाती थी। 1948 में उन्हें बिमल रॉय की हिंदी फिल्म 'अंजानगढ़' में गाने का अवसर मिला। इसके बाद, 1950 में उन्होंने हिंदी फिल्म 'तराना' में प्रसिद्ध गीत 'बोल पपीहे बोल' लता मंगेशकर के साथ गाया, जो आज भी लोगों की जुबान पर है। फिर भी, वह अधिकतर बंगाली संगीत के लिए जानी जाती रहीं।
बंगाली सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध जोड़ी उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन के लिए उनकी आवाज बनी और उनके गीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं। उनके गाने हर पीढ़ी के लोगों को भाते हैं।
संध्या मुखर्जी ने 1966 में प्रसिद्ध कवि और गीतकार श्यामल गुप्ता से विवाह किया, जिन्होंने उनके कई गीतों के बोल लिखे और उनके करियर में सहारा बने।
संध्या मुखर्जी ने अपने जीवन में कई पुरस्कार भी जीते। 1971 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, और 2011 में पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें बंगाल का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'बंग विभूषण' से नवाजा। इसके अलावा, जादवपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी दी। हालांकि, 2022 में जब उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की पेशकश की गई, तो उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उनका मानना था कि उनके जैसे वरिष्ठ कलाकार के लिए यह सम्मान छोटा है और इसे नए कलाकारों को देना चाहिए।
संध्या मुखर्जी का निधन 15 फरवरी 2022 को कोविड-19 संबंधित जटिलताओं के कारण हुआ। उन्होंने 90 साल की उम्र में आखिरी सांस ली।