क्या आप जानते हैं शुक्र प्रदोष व्रत कैसे करें ताकि महादेव की कृपा मिले?

सारांश
Key Takeaways
- शुक्र प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व है।
- इस दिन भगवान शिव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- प्रेम और संबंधों को मजबूत करने का साधन है।
- पौधों और अनाज का दान करना भी महत्वपूर्ण है।
- इस दिन की पूजा से सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
नई दिल्ली, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का आयोजन किया जाता है। जब यह व्रत शुक्रवार को आता है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है।
दृक पंचांग के अनुसार, 5 सितंबर को पहला शुक्र प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत 5 सितंबर की सुबह 4:08 बजे से शुरू होकर 6 सितंबर की सुबह 3:12 बजे तक रहेगा। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:54 बजे से दोपहर 12:45 बजे तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय सुबह 10:45 बजे से दोपहर 12:20 बजे तक रहेगा।
इस व्रत का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत से जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत खासकर प्रेम और संबंधों को मजबूत करने के लिए भी किया जाता है।
पौराणिक ग्रंथों में प्रदोष व्रत की पूजा विधि सरलता से बताई गई है। इस दिन पूजा करने के लिए, आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म- स्नान आदि करने के बाद पूजा स्थल को साफ करें। उस पर आटा, हल्दी, रोली, चावल और फूलों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। अब कुश के आसन पर बैठकर भगवान शिव और पार्वती की पूजा करें।
भोलेनाथ को दूध, जल, दही, शहद और घी से स्नान कराने के बाद बेलपत्र, माला-फूल, इत्र, जनेऊ, अबीर-बुक्का, जौ, गेहूं, काला तिल, शक्कर आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप और दीप जलाकर प्रार्थना करें।
विधि-विधान से पूजा-पाठ करने के बाद 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करें।
शाम के समय पूजन करने के बाद शुक्र प्रदोष व्रत कथा सुनें और इसके बाद आरती करें। घर के सभी सदस्यों को प्रसाद देकर भगवान से सुख-समृद्धि की कामना करें। साथ ही ब्राह्मण और जरूरतमंदों को अन्न दान करें। दूसरे दिन पारण करना चाहिए।