क्या बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन विवाद पर महत्वपूर्ण सुनवाई की।
- सरकार का अध्यादेश मंदिर की संपत्ति पर नियंत्रण की कोशिश है।
- मंदिर का प्रबंधन गोस्वामी समुदाय द्वारा किया जा रहा है।
- कोर्ट ने न्यूट्रल समिति के गठन का सुझाव दिया।
- श्रद्धालुओं के हितों की रक्षा का प्रयास किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। वृंदावन के ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर चल रहे विवाद पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई आयोजित की गई। मंदिर से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने की, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर की देखरेख एक ट्रस्ट को सौंपने की योजना बनाई गई है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार इस अध्यादेश के माध्यम से मंदिर की संपत्ति और प्रबंधन पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करना चाहती है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार मंदिर के धन का उपयोग जमीन खरीदने और निर्माण कार्यों में करना चाहती है, जो कि अनुचित है। दीवान ने अदालत से कहा कि सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही है। यह मंदिर एक निजी मंदिर है और हम सरकार की योजना के एकतरफा आदेश को चुनौती दे रहे हैं।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि आप किसी धार्मिक स्थल को पूरी तरह से निजी कैसे कह सकते हैं, जबकि वहां लाखों श्रद्धालु आते हैं? जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मंदिर की आय केवल प्रबंधन के लिए नहीं, बल्कि मंदिर और श्रद्धालुओं के विकास के लिए भी होनी चाहिए।
उपमुख्यमंत्री की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नवीन पाहवा ने कोर्ट को बताया कि सरकार यमुना तट से मंदिर तक कॉरिडोर विकसित करना चाहती है, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिलें और मंदिर क्षेत्र को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संतुलन के साथ हल करने के संकेत देते हुए सुझाव दिया कि वह हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज या वरिष्ठ जिला न्यायाधीश को एक न्यूट्रल समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है, जो मंदिर के कोष और व्यय पर निगरानी रखेगा। कोर्ट ने गोस्वामी समुदाय से पूछा कि क्या वे मंदिर में चढ़ावे और दान की राशि का कुछ हिस्सा श्रद्धालुओं की सुविधाओं और सार्वजनिक विकास पर खर्च कर सकते हैं।
श्याम दीवान ने यह भी बताया कि मंदिर का प्रबंधन ढाई सौ से अधिक गोस्वामी कर रहे हैं और वे वर्तमान व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर कोई नो-मेंस लैंड नहीं है और मंदिर के हित में पूर्व में रिसीवर की नियुक्ति भी की गई थी।