क्या भारत का वैज्ञानिक और तकनीकी परिदृश्य वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर है?

सारांश
Key Takeaways
- भारत की तकनीकी प्रगति वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग और एग्री-टेक में नवाचार हो रहा है।
- गगनयान कार्यक्रम भारत की अंतरिक्ष रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- जैव-संवर्धित बीजों का उपयोग एग्री-टेक में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
- भू-स्थानिक विज्ञान में प्रशिक्षण से आपदा नियोजन में सुधार होगा।
नई दिल्ली, 13 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत का वैज्ञानिक और तकनीकी परिदृश्य तेजी से वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है।
इंडिया नैरेटिव में प्रकाशित एक अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि तकनीकी क्षेत्र में एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में, भारत अब क्वांटम कंप्यूटिंग, एग्री-टेक, स्पेस रिसर्च और क्लीन एनर्जी जैसी प्रगति में काफी आगे है।
देश एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर रहा है, जहां इनोवेशन और निर्यात दोनों महत्वपूर्ण हैं।
नेशनल सुपरकंप्यूटिंग मिशन (एनएसएम) का 32 पेटाफ्लॉप तक पहुंचना इसके लिए एक आदर्श उदाहरण है।
इंटर यूनिवर्सिटी एक्सीलरेटर सेंटर (आईयूएसी) का 3-पेटाफ्लॉप सिस्टम जलवायु मॉडलिंग और जीनोम अनुक्रमण की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता रखता है।
एक और उदाहरण नेशनल क्वांटम मिशन है, जिसका बजट 6,003.65 करोड़ रुपए है। इसका उद्देश्य स्वदेशी रूप से हार्डवेयर और एल्गोरिदम विकसित करना है।
इसी तरह, भारतजेन एलएलएम प्रोजेक्ट के माध्यम से, भारत अपनी खास भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए एआई का उपयोग कर रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की यह तकनीकी प्रगति ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स पर भारत के 39वें स्थान और ग्लोबल आईपी फाइलिंग्स में छठे स्थान पर आने से भी स्पष्ट होती है।
इसी के साथ, आगामी गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम और हाल ही में प्रक्षिप्त निसार उपग्रह, जिसका उद्देश्य उच्च-रिज़ॉल्यूशन पृथ्वी स्कैन लेना है, अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की क्षमता को दर्शाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "भविष्य में, 2035 तक नियोजित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चंद्रमा पर उतरने का घोषित लक्ष्य यह दर्शाता है कि भारत की अंतरिक्ष रणनीति अब प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि पीढ़ीगत है।"
इस बीच, यह अनुमान है कि 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय खेतों में जैव-संवर्धित बीजों का उपयोग करेंगे, जिससे देश की एग्री-टेक कहानी भी परिवर्तनकारी होगी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लगभग 40 प्रतिशत खेतों ने सटीक कृषि को अपनाया है, जिससे 25 प्रतिशत तक अधिक उपज और 20 से 30 प्रतिशत कम पानी और उर्वरक का उपयोग हुआ है।
इस रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि देश ने सात राज्यों में 6,000 से अधिक छात्रों को स्थानिक चिंतन का प्रशिक्षण देकर भू-स्थानिक विज्ञान के क्षेत्र में भी काफी विस्तार किया है। इससे मैपिंग, डेटा विज़ुअलाइजेशन और पर्यावरण मॉडलिंग रोजमर्रा के कौशल बन सकते हैं, जिससे आपदा नियोजन और शहरी विकास को बढ़ावा मिल सकता है।