क्या 80वां यूएन डे संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर विचार करेगा?

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क्या 80वां यूएन डे संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर विचार करेगा?

सारांश

सोनीपत में ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 80वीं वर्षगांठ पर एक सेमिनार आयोजित किया, जिसमें विशेषज्ञों ने संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान प्रासंगिकता पर विचार किया। सेमिनार में संयुक्त राष्ट्र के सुधार, विकास और वैश्विक सहयोग पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई।

Key Takeaways

  • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना और उसकी उपलब्धियों पर चर्चा।
  • विकसित और कम विकसित देशों के दृष्टिकोण की समझ।
  • संयुक्त राष्ट्र सुधार की आवश्यकता।
  • वैश्विक सहयोग और विकास में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका।
  • शोधकर्ताओं की अंतर्दृष्टि और विचारों का आदान-प्रदान।

सोनीपत (हरियाणा), 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस) ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी (जेएसजीपी) ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर, जिसे सैन फ्रांसिस्को संधि के नाम से भी जाना जाता है, पर हस्ताक्षर की 80वीं वर्षगांठ पर एक महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन किया।

इस समागम में संयुक्त राष्ट्र के क्षेत्र के प्रसिद्ध विशेषज्ञ, जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स (जेएसआईए) और जेएसजीपी के संकाय सदस्य, साथ ही जेजीयू के विभिन्न स्कूलों के विद्वान और शोधकर्ता उपस्थित रहे।

मुख्य वक्ता के रूप में संयुक्त राष्ट्र प्रौद्योगिकी केंद्र के डॉ. देवदत्त महाराज और निकोरे एसोसिएट्स की डॉ. मिताली निकोरे ने विचार प्रस्तुत किए।

प्रोफेसर (डॉ.) नरेश सिंह ने उद्घाटन भाषण में वक्ताओं से कहा कि वे केवल अतीत की बात करने के बजाय वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर ध्यान दें।

डीन रामास्वामी सुदर्शन ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का परिवेश, उसकी उपलब्धियों और विफलताओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।

प्रोफेसर राजदूत मोहन कुमार ने कहा कि सदस्य देशों को उस संगठन को दोष देने के बजाय, जिसके मूल सिद्धांतों और ढांचे ने अच्छा काम किया है, समझना चाहिए कि यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता में असमानता को कम करने में मदद करता है।

डॉ. महाराज ने तर्क दिया कि संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता का दृष्टिकोण भौगोलिक स्थिति द्वारा निर्धारित होता है।

विकसित देशों में, संयुक्त राष्ट्र की आलोचना अक्सर P-5 देशों द्वारा प्रयोग की जाने वाली वीटो शक्ति के कारण होती है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाएं जैसे ब्रिक्स और G-20 का दृष्टिकोण अधिक समग्र है।

कम विकसित देशों के लिए, संयुक्त राष्ट्र की सशक्त भूमिका के बिना विकास संभव नहीं है।

डॉ. निकोरे ने अपने जुड़ाव का बखान किया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के साथ प्रारंभिक अनुभव और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ कार्य शामिल था।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को अपनी नियुक्तियों में वैश्विक दक्षिण को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

प्रोफेसर वेसेलिन पोपोव्स्की ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की निरंतर प्रासंगिकता के लिए एक नए चार्टर के निर्माण की आवश्यकता है।

प्रोफेसर सिल्विया बोट्टेगा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञता और नेटवर्क को नष्ट नहीं किया जा सकता।

प्रोफेसर नरेश सिंह ने विभिन्न बिंदुओं का सारांश प्रस्तुत किया और कहा कि विकास के ढांचे को जटिलता को समझने की आवश्यकता है।

इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र में उपस्थित विद्वानों ने संयुक्त राष्ट्र सुधार और वित्त पोषण के नए स्रोतों पर प्रश्न पूछे।

प्रोफेसर सूरज कुमार ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर बहस हमेशा होती रहती है।

संयुक्त राष्ट्र के निर्माण में अमेरिका की भूमिका और एलेनोर रूजवेल्ट द्वारा इसे एक स्वप्न के रूप में वर्णित किया गया है, जो आज भी प्रासंगिक है।

Point of View

मुझे यह कहना है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता का मुद्दा केवल वैश्विक स्तर पर नहीं, बल्कि हमारे देश के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र के सुधार और विकास की दिशा में हमें सक्रिय रूप से भागीदारी करनी चाहिए, ताकि हम वैश्विक चुनौतियों का समाधान कर सकें।

NationPress
29/10/2025

Frequently Asked Questions

संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य क्या है?
संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना, विकास को बढ़ावा देना और मानवाधिकारों की रक्षा करना है।
80वां यूएन डे क्यों मनाया जा रहा है?
80वां यूएन डे संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है।